सीख; विवेकानंद जी अमेरिका में व्याख्यान दे रहे थे, व्याख्यान सुनने वालों में अधिकतर भारतीय ही थे, स्वामी जी ने देसी कपड़े पहने थे और वे स्वदेशी वस्तुएं अपनाने के लिए ही बोल रहे थे, वहां मौजूद सभी लोग……

स्वामी विवेकानंद से जुड़ा किस्सा है। स्वामी जी अमेरिका में व्याख्यान दे रहे थे। व्याख्यान सुनने वालों में अधिकतर भारतीय ही थे।

स्वामी जी ने देसी कपड़े पहने थे और वे स्वदेशी वस्तुएं अपनाने के लिए ही बोल रहे थे। वहां मौजूद सभी लोग उनकी बातें ध्यान से सुन रहे थे। उस समय किसी ने भी स्वामी जी के पैरों पर ध्यान नहीं दिया। दरअसल, उन्होंने कपड़े तो देसी पहने थे, लेकिन उनके जूते विदेशी थे।

व्याख्यान खत्म होने के बाद एक अंग्रेज महिला उनके पास पहुंची। महिला ने कहा कि स्वामी जी, आपने स्वदेशी वस्तुएं अपनाने के लिए अच्छा व्याख्यान दिया है, मैं आपकी बातों से बहुत प्रभावित हूं, लेकिन जब मैंने आपके पैरों की ओर देखा तो आपने विदेशी जूते पहन रखें। ऐसा क्यों?

स्वामी जी ने किसी मजबूरी की वजह से वे जूते पहने थे। उन्होंने अपनी मजबूरी वाली बात नहीं कही। उन्होंने कहा कि हमारे देश में अंग्रेजों का स्थान क्या होना चाहिए, ये बताने के लिए मैं कभी-कभी विदेशी जूते पहनता हूं।

उस महिला की और स्वामी जी के बातें कई लोग सुन रहे थे। स्वामी जी का उत्तर सुनकर सभी लोग तालियां बजाने लगे। अंग्रेज महिला के चेहरे पर भी इस बात से मुस्कान आ गई थी। विवेकानंद जी ने ये उत्तर देकर अपना विरोध अंग्रेजी व्यवस्था के खिलाफ प्रकट किया था, लेकिन हंसी-मजाक के साथ।

स्वामी जी की सीख

कई बार जाने-अनजाने में हमसे चूक हो जाती है और मौका मिलते ही लोग हमारी आलोचना भी करते हैं। ऐसी स्थिति में गुस्सा आना स्वाभाविक है, लेकिन हमें गुस्से को काबू करना चाहिए और धैर्य बनाए रखना चाहिए। शांति के साथ सोच-समझकर आलोचकों को जवाब देंगे तो विवाद टाल सकते हैं और स्थितियों को सामान्य किया जा सकता है।

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