सीख; व्यास जी बोले, ‘ये बात तो मैं खुद नहीं जानता, लेकिन महाभारत की रचना करने के बाद मेरा मन कुछ ठीक नहीं है, मैं हिमालय जाऊंगा और तपस्या करूंगा, नारद जी बोले, ‘अगर आप……

महाभारत की रचना करने वाले वेद व्यास अपने आश्रम में बैठे थे और निराश थे। देवर्षि नारद वहां पहुंचे और उन्होंने वेद व्यास से निराशा की वजह पूछी।

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व्यास जी बोले, ‘ये बात तो मैं खुद नहीं जानता, लेकिन महाभारत की रचना करने के बाद मेरा मन कुछ ठीक नहीं है। अब मैं हिमालय जाऊंगा और तपस्या करूंगा।’

नारद जी बोले, ‘अगर आप ऐसा करेंगे तो सिर्फ आपका अकेले का कल्याण होगा। आपने जो साहित्य लिखा है, उसे पढ़कर कई लोग धन्य होंगे।’

व्यास जी ने कहा, ‘आपकी बात सही है, लेकिन मैं निराश क्यों हूं?’

नारद जी ने कहा, ‘मुझे ऐसा लगता है, आप जो साहित्य लिखा है, उसके केंद्र में संसार को रखा है। थोड़ा सा परिवर्तन कीजिए और ऐसा साहित्य लिखें, जिसके केंद्र में संसार बनाने वाला हो।’

व्यास जी ने पूछा, ‘ऐसा साहित्य कौन सा हो सकता है?’

नारद जी ने उत्तर दिया, ‘श्रीकृष्ण की लीलाओं का गान करें, चिंतन करें, लेखन करें।’

इसके बाद व्यास जी ने भागवत कथा की रचना की। ऐसा कहा जाता है कि भागवत लिखने के बाद व्यास जी का मन शांत हो गया।

सीख

यहां नारद मुनि ने जो बातें व्यास जी से कही हैं, उनमें हमारे लिए भी संदेश हैं। नारद मुनि का संदेश ये है कि अगर हम निराशा से बचना चाहते हैं तो हमें घर-परिवार, व्यापार और नौकरी में ईमानदारी, साफ नीयत रखनी चाहिए। साथ ही काम ऐसे करें, जिनसे दूसरों की भलाई हो सके।

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