सीख; शुक्राचार्य ने ययाति से एक वचन लिया था कि वह कभी भी देवयानी के अलावा किसी अन्य स्त्री से रिश्ता नहीं रखेगा, ययाति ने भी शुक्राचार्य को ये वचन दे दिया था, कुछ समय बाद……..
मैरिड लाइफ में पति-पत्नी के बीच आपसी तालमेल के साथ ही विश्वास न हो तो रिश्ता टूटने में ज्यादा समय नहीं लगता है। श्रीमद्भागवत ग्रंथ में राजा ययाति और देवयानी की कथा से ये बात समझ सकते हैं।
राजा ययाति और देवयानी पति-पत्नी थे। देवयानी दैत्य गुरु शुक्राचार्य की बेटी थी। जब इनका विवाह हुआ था दैत्यों की राजकुमारी शर्मिष्ठा भी देवयानी के साथ दासी के रूप में गई थी। दरअसल शर्मिष्ठा देवयानी से एक शर्त हार गई थी और इस कारण उसे देवयानी की दासी बनना पड़ा था।
उस समय शुक्राचार्य ने ययाति से एक वचन लिया था कि वह कभी भी देवयानी के अलावा किसी अन्य स्त्री से रिश्ता नहीं रखेगा। ययाति ने भी शुक्राचार्य को ये वचन दे दिया था। कुछ समय बाद देवयानी गर्भवती हो गई।
दूसरी ओर शर्मिष्ठा एक दासी के रूप में ययाति के महल के पीछे छोटी सी कुटिया में रह रही थी। एक दिन ययाति शर्मिष्ठा को देखकर उसकी ओर मोहित हो गए और उन्होंने शर्मिष्ठा से संबंध बना लिए। राजा ययाति शुक्राचार्य को दिया हुआ वचन भी भूल गए थे। बाद में शर्मिष्ठा और ययाति की बात जब देवयानी को मालूम हुई तो वह अपने पिता के घर पहुंच गई और पूरी बात बता दी।
शुक्राचार्य इस बात से बहुत क्रोधित हो गए। उन्होंने ययाति को शाप दे दिया कि वे तुरंत बूढ़े हो जाएंगे। शाप के असर से ययाति बूढ़े हो गए। इस तरह देवयानी और ययाति का वैवाहिक रिश्ता बर्बादी की कगार पर पहुंच गया था।
कथा की सीख
इस कथा की सीख यही है कि पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ तालमेल बनाए रखें, साथ ही कभी भी एक-दूसरे का भरोसा न तोड़ें। वैवाहिक जीवन में भरोसा टूटता है तो रिश्ता टूटने में ज्यादा समय नहीं लगता है।