सीख; श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा, राज धर्म निभाना आसान काम नहीं है, एक काम करें, आप पांचों भाई और द्रौपदी मेरे साथ उस शिविर में चलिए, जहां भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटे हुए हैं…….

युधिष्ठिर इस बात को लेकर दुखी थे कि उन्होंने जो युद्ध जीता है, वह अपने ही लोगों को मार जीता है। युधिष्ठिर को राजा बनना था, लेकिन उनका मन बहुत विचलित था।

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श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को समझाया, ‘आप राजा बनेंगे तो ये तो तय है कि राजगादी पर बैठने वाले व्यक्ति को जीवन में हर पल संघर्ष करना पड़ता है। अगर आप ये सोचेंगे कि राजा बनकर सुख मिलेगा तो ऐसा नहीं है। राजतिलक अपने आप में बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। जीवन में जो बीत गया है, उसका संघर्ष होगा और वर्तमान के साथ ही भविष्य के लिए कई योजनाएं बनानी होंगी। राज धर्म निभाना आसान काम नहीं है। एक काम करें, आप पांचों भाई और द्रौपदी मेरे साथ उस शिविर में चलिए, जहां भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटे हुए हैं।

कुछ दिनों के बाद सूर्य उत्तरायण होगा और भीष्म देह त्याग देंगे। उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला हुआ है। मेरा अनुरोध है कि आप सभी भाई भीष्म से राज धर्म का ज्ञान हासिल कर लें। भीष्म जैसे लोग दुनिया में दोबारा नहीं आते हैं। भीष्म ने राज धर्म के हर एक दृष्टिकोण को जिया है।’

पांडवों को लेकर श्रीकृष्ण भीष्म के शिविर में पहुंच गए। भीष्म ने देख लिया कि भगवान पांडवों को लेकर आए हैं तो भीष्म ने कहा, ‘मैं आपको प्रणाम भी नहीं कर सकता। मेरे शरीर में थोड़ी सी भी जगह नहीं है, जहां तीर न हो, लेकिन आप आए हैं तो आदेश करें।’

श्रीकृष्ण ने कहा, ‘अब युधिष्ठिर राजा बनने वाले हैं तो आप इन्हें राज धर्म का ज्ञान दीजिए।’

भीष्म ने युधिष्ठिर को राज धर्म का जो ज्ञान दिया, उसका महाभारत में विस्तार से वर्णन किया हुआ है।

सीख

इस किस्से का संदेश ये है कि हमें जब भी कोई नई जिम्मेदारी मिलती है, हमारे जीवन कोई बड़ा काम होने वाला है तो हमें घर के बड़ों से उनके अनुभव, आशीर्वाद और मार्गदर्शन लेना चाहिए। श्रीकृष्ण पांडवों के भीष्म के पास इसलिए ही लेकर गए थे कि युधिष्ठिर राज धर्म जान सके। भले ही घर के बड़े लोग निष्क्रिय हों, लेकिन उनके शरीर से निकलने वाली तंरगें, सकारात्मकता हमारे लिए आशीर्वाद की तरह ही है। बड़ों का हर स्थिति में सम्मान करें।

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