ये था हिंदुस्तान का असली ठग, जिसके नाम पर दर्ज थे 931 मर्डर केस
आए दिन ऐसी चर्चाएं सुनने को मिलती रहती है कि किसी ने किसी को ठग लिया पुराने जमाने में भारतीय ठगों को लेकर कई किस्से सुनने को मिलते थे. हालांकि ठगों का अपना उसूल होता था. यह लोग धार्मिक होते थे और जो पैसा ठगी से हासिल करते थे उन्हीं गरीबों में बांट देते थे. 1839 में एक किताब प्रकाशित हुई जिसका नाम नावेल कंफेशंस ऑफ अ ठग है जिसमें भारतीय ठगों के कई किस्से बताए गए हैं. इसी किताब में एक मशहूर ठग की कहानी बताई गई है, जिसके ऊपर आमिर खान की फिल्म ठग्स ऑफ हिंदुस्तान बनाई गई थी.
इनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि पहले मुसलमान इस समूह में शामिल थे. लेकिन बाद में हिंदू, सिख और राजपूत समुदाय के लोग भी इससे जुड़ गए. यह देवी काली के उपासक माने जाते थे. यह लोग यात्रा करने वाले यात्रियों का सामान लूटते थे और हत्याएं भी करते थे.
ऐसा कहा जाता है कि इन लोगों को हत्याओं के दौरान खून बहाना पसंद नहीं था. इसीलिए यह हत्या करने का नया-नया तरीका खोजते थे. यह लोग पीले रंग के रुमाल से यात्री का गला घोट कर हत्या करते थे और लूट करते थे. अपनी लूट का कुछ हिस्सा मंदिरों में दान कर देते थे.
यह अपने उसूलों के बहुत पक्के हुआ करते थे. यह लोग महिला, बच्चों, फकीरों, अपाहिजों की हत्या नहीं करते थे. कुछ लोगों का मानना है कि ठगों का कुनबा पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है, बल्कि अब यह लोग अंडरग्राउंड हो गए हैं. यह लोग सड़कों पर अभी भी ठगी करते हैं. इनकी पहचान इनके पीले रुमालों से की जाती है.