एक बार एक सेठ अपने कुत्ते के साथ नाव से यात्रा कर रहा था, पहली बार वो कुत्ता किसी नाव में बैठा था, वह नाव में काफी उछल-कूद कर रहा था, नाव में बैठे बाकी सभी लोग…..
एक सेठ अपने कुत्ते के साथ नदी पार करने गए। कुत्ता पहली बार नाव में बैठा था। जैसे ही नाव नदी में आगे बढ़ने लगी और नाव हिलती-डुलती तो कुत्ता घबरा जाता। चारों ओर पानी देखकर कुत्ता डर गया और उछल-कूद करने लगा। नाव में बैठे सभी लोग डर रहे थे कि कहीं कुत्ते के उछलने-कूदने की वजह से नाव डूब ना आ जाए।
सेठ सभी के डर को समझ गए। लेकिन वह कुत्ते को काबू नहीं कर पा रहे थे। नाव में एक बुद्धिमान संत बैठे थे, जिन्होंने सेठ से कहा कि अगर आप आज्ञा दें तो मैं इसे ठीक कर सकता हूं।
सेठ ने संत को आज्ञा दे दी। संत उठे और उन्होंने कुत्ते को पकड़कर नदी में डाल दिया। कुत्ता घबरा गया और नाव में चढ़ने की कोशिश करने लगा। उसे मृत्यु का डर सताने लगा। संत ने तुरंत कुत्ते को पकड़कर नाव में फिर से चढ़ा लिया।
अब कुत्ता चुपचाप एक जगह बैठ गया। सेठ और नाव के सभी लोग देखकर हैरान रह गए कि आखिर यह कुत्ता शांत कैसे बैठ गया। शेर ने संत से पूछा। उसने कहा कि जब कुत्ते को पानी में फेंका तो इसे पानी की ताकत और नाव का महत्व समझ आ गया। इस वजह से यह चुपचाप बैठ गया।
कहानी की सीख
इस कहानी से यही सीख मिलती है कि जब तक हम खुद परेशानियों का अनुभव नहीं कर लेते, तब तक हम दूसरे की समस्याओं को नहीं समझ पाते। इसीलिए हमें दूसरे की समस्याओं को समझना चाहिए, ताकि उन्हें भी कोई परेशानी ना हो।