किसी आश्रम में गुरु और शिष्य रहते थे, दोनों खिलौने बनाने में माहिर थे, इसी से दोनों का जीवन यापन होता था, गुरु के मार्गदर्शन की वजह से शिष्य बहुत अच्छे खिलौने बनाता था और……
हिंदू धर्म शास्त्रों में गुरु को भगवान से बढ़कर दर्जा दिया गया है. गुरु हमारी गलतियों को सुधारने में मदद करता है और हमारे अंदर की प्रतिभा को निखारता है. गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान से हम सुखी जीवन जी सकते हैं. एक प्राचीन कथा को सुनकर आपको गुरु का महत्व समाचार जाएगा.
प्राचीन काल में एक आश्रम में गुरु और शिष्य रहते थे. दोनों खिलौने बेचकर अपना जीवन यापन करते थे. शिष्य गुरु के मार्गदर्शन में बहुत अच्छे खिलौने बनाना सीख गया और उसके खिलौने गुरु से ज्यादा कीमत में बिकने लगे थे. फिर भी गुरु उससे रोज कहते थे कि बेटा और मन लगाकर काम करो. अभी भी तुम्हारे अंदर पूरी कुशलता नहीं आई है.
गुरु की यह बात सुनकर शिष्य को ऐसा लगने लगा कि गुरुजी के खिलौने मुझसे कम दामों में बिकते हैं. इस वजह से वह मुझसे जलते हैं. जब कुछ दिनों तक गुरु ने लगातार उसे अच्छा काम करते रहने की सीख दी तो 1 दिन शिष्य गुस्से में आ गया और उसने गुरु से कहा कि मैं आपसे अच्छे खिलौने बनाता हूं. मेरे खिलौने ज्यादा कीमत पर बिकते हैं. फिर भी आप मुझसे हमेशा अच्छे खिलौने बनाने को कहते हैं.
गुरु समझ गए कि शिष्य में अहंकार आ गया है, ये क्रोधित हो रहा है. उन्होंने कहा कि बेटा जब मैं तुम्हारी उम्र का था तो मेरे खिलौने भी मेरे गुरु के खिलौने से ज्यादा दामों में बिकते थे. एक दिन मैंने भी तुम्हारी तरह से ही अपने गुरु से बात कही. उस दिन गुरु ने मुझे सलाह देना बंद कर दिया और फिर मेरी कला का विकास नहीं हो पाया. इसी वजह से मैं चाहता हूं कि तुम्हारे साथ ऐसा ना हो, जो मेरे साथ हुआ. गुरु की यह बात सुनकर शिष्य शर्मिंदा हो गया और उस क्षमा मांगी. इसके बाद वह गुरु की आज्ञा का पालन करने लगा और उसकी कला की लोकप्रियता दूर-दूर तक फैल गई.
कथा की सीख
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें अपने गुरु को सम्मान देना चाहिए और गुरु जो सलाह देते हैं उसे गंभीरता से लेना चाहिए. तभी हम सुखी जीवन जी पाएंगे.