किसी नगर में एक धनी सेठ रहता था, एक दिन नगर में प्रसिद्ध संत आए, सेठ संत से मिलने पहुंचा, सेठ ने संत को सोने के सिक्कों से भरी थैली दान में दी और कहा- बाबा मुझे आशीर्वाद दीजिए…..

एक नगर में बहुत ही धनी सेठ रहता था। एक दिन वह सेठ प्रसिद्ध संत के पास गया और उसके पैर छुए। सेठ ने संत को सोने के सिक्कों से भरी थैली दान में दी और कहा- बाबा मुझे आशीर्वाद दीजिए। संत ने कहा कि ये थैली उठाओ, मैं भिखारियों से दान नहीं लेता।

संत की बात सुनकर सेठ हैरान रह गया और बोला कि बाबा मैं तो धनवान हूं। मेरे पास असंख्य सोने के सिक्के हैं, बड़ा घर है, जमीन-जायदाद है। लेकिन आप मुझे भिखारी क्यों कह रहे हैं।

संत बोले- अगर तू धनी है तो तुझे किस बात का आशीर्वाद चाहिए। सेठ ने संत से कहा- महाराज मैं बहुत परेशान हूं, मेरा मन अशांत है, मैं शांति चाहता हूं। मैं इस राज्य का सबसे अमीर व्यक्ति बनना चाहता हूं। इसलिए मैं दिन रात मेहनत करता हूं। अगर आप मुझे आशीर्वाद देंगे तो यह संभव हो पाएगा।

संत ने कहा- जब तेरी इच्छाओं का ही कोई ठिकाना नहीं है, तो तू खुद को भिखारियों से अलग क्यों मानता है। जो लोग वासनाओं और कामनाओं में उलझे रहते हैं, वे कभी धनी नहीं माने जाते। इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती। जब तक इच्छाएं रहेगी, तब तक हमारा मन अशांत रहेगा। संत की बात सुनकर सेठ ने मोह-माया छोड़ दी और वे संत के शिष्य बन गए।

लाइफ मैनेजमेंट

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जब तक हमारी इच्छाएं रहेगी, तब तक हमारा मन अशांत रहेगा। इसीलिए हमें अपनी इच्छा को काबू में करना होगा, तभी हमें शांति मिलेगी।

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