एक संत हर शाम अपने आश्रम प्रवचन देते थे, एक युवक रोजाना उनके प्रवचन सुनने आता था, संत की वाणी में बहुत ही गजब का जादू था……

बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो लोग ज्ञान की बातें सुनते हैं। लेकिन कुछ ही देर में भूल जाते हैं। लेकिन ज्ञान की बातें सुनने और पढ़ने से जीवन में धीरे-धीरे ही सही लेकिन सकारात्मक परिवर्तन होता है। अगर आपको लगता है कि आप ज्ञान की बातें अपने जीवन में नहीं उतार सकते तो यह प्रेरक कहानी आपके लिए है। इस कहानी में यह बताया गया है कि आखिर कैसे संत ने एक युवक को समझाया कि वह अपने जीवन में ज्ञान की बातों को कैसे अपना सकता है।

यहां से जाने के बाद में अपने ग्रहस्थ जीवन में वैसा आचरण नहीं कर पाता, जैसा आप प्रवचन देते हैं। इससे सत्संग के महत्व पर शंका होने लगी है। बताओ मैं क्या करूं।

संत ने एक युवक को एक बांस की टोकरी दी और कहा कि इसमें पानी भर लाओ। युवक टोकरी में कई बार कोशिश करने के बावजूद पानी नहीं भर पाया। संत ने उससे कहा कि है कार्य निरंतर जारी रखो। युवक प्रतिदिन टोकरी में जल भरने की कोशिश करता। लेकिन वह असफल हो जाता। कुछ दिन बाद संत ने पूछा- इतने दिनों से टोकरी में लगातार जल डालने से क्या टोकरी में कोई फर्क आया।

युवक बोला- एक फर्क जरूर नजर आया है। पहले टोकरी में मिट्टी जमा होती थी, अब वह साफ दिखाई देती है। कोई गंदगी नहीं दिखाई देती। इसके छेद पहले जितने बड़े नहीं रह गए हैं, बहुत छोटे हो गए हैं। संत बोले- जैसे तुम टोकरी में निरंतर पानी डालते रहे तो कुछ ही दिनों में छेद फूलकर बंद हो गए और एक दिन टोकरी में पानी भर जाएगा। इसी तरह तुम निरंतर सत्संग सुनते रहोगे तो तुम्हारा मन एक दिन अवश्य निर्मल हो जाएगा। अवगुणों के छिद्र भरने जाएंगे और गुणों का जल भरने लगेगा। युवक संत की बात को समझ गया।

कहानी की सीख

इस कहानी से यही सीख मिलती है कि निरंतर सत्संग सुनने से दुर्जन भी सज्जन हो जाते हैं, क्योंकि महापुरुषों की पवित्र वाणी उनके मानसिक विकारों को दूर कर देती है और उनमें सद्विचारों को भरती है।

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