एक राजा बहुत धार्मिक और संस्कारी था, एक बार उसने अपने जन्मदिन पर उसने सोचा कि आज मुझे किसी एक व्यक्ति की सारी इच्छाएं पूरी करनी…….
एक राजा अपनी प्रजा के सुख दुख का बहुत ध्यान रखता था. वह बहुत ही धार्मिक और संस्कारी था. एक दिन उसका जन्मदिन आया तो उसने सोचा कि आज मुझे किसी एक व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी करनी चाहिए. राजा को जन्मदिन की शुभकामनाएं देने राजमहल में बहुत से लोग आए. साथ ही राजा के पास एक संत भी आए. राजा साधु संतों का बहुत सम्मान करता था. वह संत से मिलकर बहुत खुश हुआ.
राजा ने संत को बताया कि गुरुदेव आज मैंने प्रण किया है मैं किसी एक व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी करूंगा. मैं आपकी सभी इच्छाएं पूरी करना चाहता हूं. आप जो चाहे मांग ले. संत बोले- मैं तो सांसारिक जीवन त्याग चुका हूं. मैं राज्य से बाहर रहता हूं. दिनभर भगवान की भक्ति करता हूं. मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं. अगर आप कुछ देना ही चाहते हैं तो अपनी इच्छा से दे दीजिए.
यह सुनकर राजा सोचने लगा कि संत को क्या देना चाहिए. उसने संत से कहा कि मैं आपको एक गांव दे देता हूं. संत बोले- नहीं महाराज गांव तो वहां रहने वाली प्रजा का है. आप तो सिर्फ उस गांव के रक्षक हैं. राजा ने कहा- आप यह महल ले लीजिए. संत बोले कि यह भी आपके राज्य का ही है. आप यहां बैठकर प्रजा की भलाई का काम करते हैं. यह संपत्ति भी प्रजा की है.
बहुत सोचने के बाद राजा बोले कि गुरु जी आप मुझे अपना सेवक बना लीजिए. मैं आपको स्वयं को अर्पित करता हूं. संत बोले- आप पर आपकी पत्नी और बच्चों का अधिकार है. मैं आपको अपनी सेवा में नहीं रख सकता. अब राजा परेशान हो गया और गुरु से उसे बोला कि आप ही बताएं मैं आपको क्या दूं. संत ने कहा- राजन आप मुझे अपना अहंकार दे दीजिए. आप अहंकार त्याग दे. यह एक बुराई है जिसे व्यक्ति आसानी से नहीं छोड़ पाता. इस वजह से व्यक्ति के जीवन में परेशानियां आती हैं. राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अहंकार छोड़ने का संकल्प लिया.