एक जंगल में बहुत बड़ा पेड़ था, उस पेड़ पर गौरैया का जोड़ा रहता था, एक दिन वहां बहुत तेज बारिश हुई, तो एक बंदर उस पेड़ के नीचे आकर खड़ा हो गया, वह पूरी तरह से भीगा हुआ…….

आचार्य विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र की रचना की. यह ग्रंथ मौर्य काल का है जिसमें सफल जीवन से जुड़ी कई बातें बताई गई हैं. पंचतंत्र को पांच भागों में बांटा गया है जिसमें एक भाग मित्रभेद नाम से है. इस भाग में मित्र और शत्रु की पहचान से जुड़ी कई कहानियां बताई गई है. इसी अध्याय में एक कहानी है.

पंचतंत्र के मित्रभेद अध्याय में लिखा है

उपदेशो हि मूर्खाणां, प्रकोपाय न शान्तये।

पयःपानं भुजडाग्नां केवल विषवर्धनम्।।

इस नीति के अनुसार मूर्खों को दिया गया उपदेश उसी प्रकार उनके क्रोध को बढ़ाने वाला होता है, जैसा सांप को दूध पिलाने से उनका विष बढ़ जाता है.

यह है इस नीति से जुड़ी कहानी

एक जंगल में बहुत बड़ा पेड़ था जिस पर गौरैया का एक जोड़ा रहता था. एक बार जंगल में बहुत तेज बारिश हो रही थी. गौरैया अपने घोसले में आकर बैठ गई. थोड़ी देर बाद एक बंदर उस पेड़ के नीचे आकर खड़ा हो गया. वह पूरी तरह भीग गया और कांपने लगा. बंदर मूर्ख था. इसी वजह से उसने कोई घर नहीं बनाया और बारिश में उसे परेशानी झेलनी पड़ी.

गौरैया ने बंदर को परेशान देखा तो उसने बंदर से कहा कि तुम अपना घर बना कर आराम से रहो. गौरैया की सलाह को बंदर ने अपना अपमान समझ लिया और उसने सोचा कि गौरैया के पास अपना घोंसला है, इसी वजह से वह उसका मजाक उड़ा रही है. इस बात से बंदर को बहुत गुस्सा आ गया और उस मूर्ख बंदर ने गौरैया का घोंसला तोड़ दिया, जिससे वह बेघर हो गई.

कहानी की सीख

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि मूर्खों को कोई सलाह नहीं देनी चाहिए. नहीं तो अपना नुकसान होता है.

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