एक संत अपने शिष्यों के साथ आश्रम में रहते थे, उनका एक शिष्य बड़ा ही आलसी था, उसकी शिक्षा लगभग पूरी होने वाली थी, लेकिन उसे समय के मूल्य की बिल्कुल भी समझ……
प्राचीन काल में एक आश्रम में एक गुरु अपने शिष्यों के साथ रहा करते थे. वह बहुत ही विद्यमान थे. लेकिन उनका एक शिष्य बहुत ज्यादा आलसी था. शिष्य की शिक्षा पूरी होने वाली थी. लेकिन अभी भी वह समय का मूल्य नहीं समझा था. वह हर काम कल पर टाल देता. गुरु ने सोचा कि अगर इसे समय का महत्व पता नहीं चला तो इसका जीवन बर्बाद हो जाएगा.
एक दिन गुरु ने शिष्य को एक पत्थर दिया और कहा कि ये पारस पत्थर है. तुम चाहे इससे जितना सोना बना लो. लेकिन तुम्हारे पास केवल 2 दिन है. मैं 2 दिन बाद आश्रम लौट आऊंगा और तुमसे यह पत्थर वापस ले लूंगा. तब तक तुम लोहे की जितनी चीजों से इसे स्पर्श करोगे, वह सोने की हो जाएंगी. गुरु उस पत्थर को अपने शिष्य को देकर वहां से चले गए.
शिष्य पत्थर पाकर खुश हो गया और सोचने लगा कि वह इतना सोना बना लेगा कि उसे जीवन भर कमाना नहीं पड़ेगा. उसने सोचा कि अभी तो मेरे पास 2 दिन है. मैं आज आराम करता हूं और कल सोना बनाऊंगा. पूरे दिन और पूरी रात वह आराम करता रहा और अगले दिन उसने सोचा कि मैं पहले बहुत सारा लोहा ले आता हूं और फिर उससे सोना बना लूंगा. लेकिन मैं पहले खाना खा लेता हूं.
जब उसने खाना खाया तो उसे नींद आने लगी. उसने सोचा कि मैं कुछ देर सो लेता हूं. सोना बनाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. वह सो गया और जब उसकी नींद खुली तो सूर्यास्त हो चुका था. जब वह नींद से जागा तो उसने देखा कि उसके गुरु वापस आ गए हैं. गुरु ने शिष्य से कहा कि अब रात हो चुकी है. 2 दिन खत्म हो गए. तुम मुझे पत्थर लौटा दो. शिष्य ने पत्थर लौटा दिया और उसे अपनी गलती समझ आ गई. उसे पता चल गया कि समय बहुत मूल्यवान है, जिसे बर्बाद नहीं करना चाहिए.
कहानी की सीख
इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि अगर हमें कुछ करना है तो हमें कल पर नहीं टालना चाहिए. बल्कि आज ही अपना काम पूरा करना चाहिए. नहीं तो बाद में पछताना पड़ता है.