एक बार एक व्यक्ति ने एक आश्रम में गाय दान में दी, इससे शिष्य बहुत खुश हुआ, उसने तुरंत अपने गुरु को जाकर इस बारे में बताया, गुरु ने उससे कहा चलो अच्छा है अब कम से कम ताजा दूध…….
महाभारत की एक नीति में बताया गया है कि हर व्यक्ति को हर परिस्थिति में प्रसन्न रहना चाहिए. सुख हो या दुख हम अगर हर हाल में समभाव रहेंगे तो जीवन में सफलता मिलेगी. महाभारत के आदिपर्व में लिखा है-
दु:खैर्न तप्येन्न सुखै: प्रह्रष्येत् समेन वर्तेत सदैव धीर:।
दिष्टं बलीय इति मन्यमानो न संज्वरेन्नापि ह्रष्येत् कथंचित्।।
इस श्लोक का अर्थ है कि हमें बुरे समय में यानी मुश्किल परिस्थितियों में दुखी नहीं होना चाहिए. जबकि सुख के दिनों में हमें बहुत ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए. सुख हो या दुख हमें हर समय प्रसन्न रहना चाहिए. हमें सुख और दुख के लिए समभाव रखना चाहिए. जो लोग इस नीति का पालन करते हैं, उनका जीवन सफल होता है.
एक प्राचीन कथा के मुताबिक, किसी व्यक्ति ने एक आश्रम में एक गाय का दान किया जिससे शिष्य बहुत प्रसन्न हो गया. उसने अपने गुरु को यह बात बताई तो गुरु ने कहा कि चलो अच्छा अब हम रोज ताजा दूध पी सकेंगे. कुछ दिन तक तो गुरु शिष्य को ताजा दूध मिलता रहा. लेकिन एक दिन वह दानी व्यक्ति वापस आश्रम में आया और अपनी गाय ले गया.
यह देखकर शिष्य दुखी हो गया और उसने गुरु से कहा कि गुरुजी वह व्यक्ति गाय को वापस ले गया. इसके बाद गुरु ने कहा- चलो अच्छा है अब गाय का गोबर और गंदगी साफ नहीं करनी पड़ेगी. यह सुनकर शिष्य ने गुरु से पूछा कि क्या गुरुजी आपको इसका दुख नहीं हुआ कि अब हम ताजा दूध नहीं पी पाएंगे. उन्होंने कहा- हमें हर हाल में समभाव ही रहना चाहिए. यह सफल जीवन का मूल मंत्र है. जब गाय मिली तब हम बहुत ज्यादा खुश नहीं हुए और जब वह चली गई है, तब हमें दुखी नहीं होना चाहिए.