देवराज इंद्र को पता चला कि एक राजा बहुत बड़ा दानवीर है, इंद्र ने राजा की परीक्षा लेने के बारे में सोचा, इंद्रदेव ने बाज और अग्नि देव ने कबूतर का भेष धारण कर लिया, आगे-आगे कबूतर और पीछे-पीछे बाज था, अचानक……

एक राजा बहुत बड़ा दानवीर था। इस बारे में देवराज इंद्र को पता चला तो उन्होंने राजा की परीक्षा लेना चाही। इंद्रदेव ने बाज का और अग्निदेव ने कबूतर का वेश धारण कर लिया।

आगे आगे कबूतर उड़ रहा था और पीछे-पीछे बाज। अचानक से वहीं कबूतर राजा की गोद में गिर गया। राजा ने उस कबूतर को सहलाया। उसी वक्त बाज भी वहां आ गया। बाज ने राजा से कहा कि यह मेरा शिकार है। मुझे बहुत दिनों से भूख लग रही है। कृपया इस कबूतर को मुझे दे दें।

राजा ने बाज से कहा कि यह मेरी शरण में आया है। इसकी सहायता करना मेरा कर्तव्य है। बाज ने राजा से कहा कि अगर मैं मर गया तो फिर इसका पाप तुमको लगेगा। राजा चक्कर में पड़ गए। फिर उन्होंने बहुत सोचा और अंत में एक रास्ता निकाल लिया।

राजा ने बाज से कहा कि मैं तुम्हें इस कबूतर के वजन के बदले में मांस दूंगा। बाज राजा की बात मानने के लिए तैयार हो गया। राजा ने अपने सैनिकों से एक तराजू मंगाया और तराजू के एक तरफ कबूतर को रख दिया। तो वहीं दूसरी तरफ राजा अपनी बाजूओं से मांस निकालकर तराजू के दूसरी तरफ रखने लगा।

लेकिन मांस का वजन बढ़ने की बजाय कबूतर का वजन बढ़ते जा रहा था। कबूतर का बजन ज्यादा था और इस कारण राजा ने खुद को ही बाज को भोजन के रूप में सौंप दिया।

देवराज इंद्र को राजा की दानवीरता बहुत पसंद आई और वे बहुत प्रसन्न हुए। अग्नि देव और इंद्र देव अपने असली रूप में आ गए और राजा से कहा कि हम तुम्हारी दान वीरता से बहुत प्रसन्न है। तुम इस दुनिया के सर्वश्रेष्ठ दानियों में से एक हों।

कहानी की सीख

इस कहानी से हमें सीखने को मिलता है कि भगवान हमेशा अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं। परीक्षा यानी कि अपने बुरे समय में धैर्य और शांति बनाए रखते हैं और धर्म का मार्ग नहीं छोड़ते हैं। वहीं भगवान के असली भक्त होते हैं। लेकिन बुरा समय आने पर लोग अधर्म का मार्ग अपनाते हैं।

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