एक दिन रावणबीके मन में विचार आया कि मैं यहां सोने की लंका में रहता हूं और मेरे आराध्या कैलाश पर्वत पर रहते हैं, क्यों ना मैं अपने गुरु को यहां सोने की लंका में लेकर आ जाऊं, इसी सोच के साथ रावण कैलाश पर्वत………
कभी-कभी कुछ लोगों की बातें हमें क्रोधित कर देती हैं, जबकि वे लोग वह हमसे ना तो ज्ञान में आगे होते हैं और ना ही अनुभव में। थोड़ी-सी योग्यता होने पर भी कई लोग दूसरों का अपमान करते हैं और इन मौकों पर हर कोई अपना धैर्य खो देता है। ग्रंथों में बताया गया है कि विवाद और क्रोध उन्हीं पर करना चाहिए जिनकी योग्यता आप के बराबर हो। अगर आपकी और उसकी योग्यता समान नहीं है तो फिर विवाद करना आपके लिए ही हानिकारक है। इस पोस्ट में हम आपको भगवान शिव एवं रावण के एक प्रेरक प्रसंग के बारे में बताएंगे। आइए जानते हैं कैसे रावण के मूर्खतापूर्ण काम पर शिवजी ने गुस्सा नहीं किया और उसको सबक सिखाया।
रावण को भगवान का बहुत ही श्रेष्ठ भक्त माना जाता है। रावण ने शिव जी को अपना आराध्य और गुरु माना। रावण के मन में विचार आया कि मैं तो सोने की लंका में रहता हूं जबकि मेरे आराध्य और गुरु कैलाश पर्वत पर। भगवान शिव को भी सोने की लंका में लाया जाए। रावण कैलाश पर्वत गया और वह तलहटी में पहुंचा।
रास्ते में रावण को भगवान शिव के वाहन नंदी मिले और रावण ने अहंकार में नंदी को कोई उत्तर नहीं दिया। नंदी ने रावण से बात की तो रावण ने नंदी का अपमान किया। रावण ने नंदी से कहा कि मैं अपने आराध्य शिवजी को सोने की लंका लेकर जाना चाहता हूं। इस पर नंदी ने रावण से कहा कि भगवान शिव को उनकी इच्छा के खिलाफ कोई भी कहीं नहीं लेकर जा सकता।
हालांकि रावण को काफी ज्यादा घमंड था। भगवान शिव ने रावण की बात नहीं मानी। इसीलिए वह पूरा कैलाश पर्वत उठाकर ले गया। भगवान शिव सब कुछ देख रहे थे। पूरा कैलाश पर्वत हिलने लगा और सभी लोग डर गए। जैसे ही रावण ने अपना पूरा हाथ कैलाश पर्वत की चट्टान के नीचे फंसाया तो भगवान शिव ने अपने पैर के अंगूठे से ही कैलाश पर्वत को दबा दिया।
रावण कैलाश पर्वत के नीचे से अपना हाथ नहीं निकाल पा रहा था। इसके बाद रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्त्रोत की रचना की और फिर भगवान शिव ने रावण को मुक्त कर दिया।