एक दिन दुर्वासा मुनि भगवान विष्णु जी के पास पहुंचे, उस समय विष्णु जी ने दुर्वासा मुनि को अपनी दिव्य माला उपहार में दी, दुर्वासा मुनि जब लौट रहे थे तो रास्ते में उन्हें देवराज इंद्र दिखाई……
शिव जी के 19 अवतारों में से एक था दुर्वासा अवतार। पुराने समय में महर्षि अत्रि और अनसूया (अनुसुइया) के यहां चंद्र देव, दत्तात्रेय और दुर्वासा मुनि का जन्म हुआ था। दुर्वासा मुनि को शिव जी का अवतार माना जाता है। वे बहुत ही क्रोधी स्वभाव के थे। अपने गुस्से की वजह से दुर्वासा मुनि ने देवराज इंद्र को भी शाप दिया था। जानिए पूरी कथा…
एक दिन दुर्वासा मुनि विष्णु जी के पास पहुंचे। उस समय विष्णु जी ने दुर्वासा मुनि को अपनी दिव्य माला उपहार में दी। विष्णु जी से मिलकर दुर्वासा मुनि लौट रहे थे। तभी उन्हें रास्ते में देवराज इंद्र दिखाई दिए।
इंद्र अपने ऐरावत हाथी पर सवार थे और दुर्वासा मुनि पैदल थे। इन दोनों ने एक-दूसरे को देख लिया। उस समय दुर्वासा जी ने सोचा कि विष्णु जी ने जो माला दी है, वह मेरे किसी काम की नहीं है। ये माला इंद्र को दे देता हूं। इंद्र स्वर्ग के राजा हैं तो इन गले में ये माला शोभा देगी। ऐसा सोचकर दुर्वासा मुनि ने विष्णु जी की माला इंद्र को उपहार में दे दी।
देवराज इंद्र ने दुर्वासा जी से वह माला ले ली। उस समय देवराज इंद्र का अहंकार जाग गया। वह अपने ऐरावत हाथी पर बैठे हुए थे, स्वर्ग के राज-पाठ का घमंड था। इसी घमंड की वजह से इंद्र ने सोचा कि ये सामान्य सी माला मेरे काम नहीं आएगी। ये सोचकर इंद्र ने वह माला अपने ऐरावत हाथी के ऊपर डाल दी। ऐरावत ने अपनी सूंड से वह माला पकड़ी और पैरों से कुचल दी।
ये सब दुर्वासा मुनि ने देख लिया, अपने उपहार का ऐसा अपमान देखकर वे क्रोधित हो गए। गुस्से में उन्होंने इंद्र से कहा कि आज तूने अपने राज-पाठ और पद के घमंड में मेरे उपहार का अनादर किया है, मैं तूझे शाप देता हूं, तेरा सारा वैभव चला जाएगा और तू स्वर्गहीन हो जाएगा।
दुर्वासा मुनि के शाप से डरकर देवराज इंद्र ब्रह्मा जी के पास पहुंचे, उस ब्रह्मा जी ने इंद्र को समझाया कि ये सब आपके अहंकार की वजह से हुआ है। दुर्वासा मुनि का शाप सत्य होकर रहेगा। इसके बाद असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया और देवता पराजित हो गए। इंद्र को स्वर्ग से जाना पड़ा था।
लाइफ मैनेजमेंट
इस कथा का संदेश यही है कि हमें कभी भी अपने पद, धन, घर-परिवार का अहंकार नहीं करना चाहिए। कभी किसी को छोटा न समझें। किसी के उपहार का अनादर न करें। अहंकार की वजह से रावण, कंस जैसे महाशक्तिशाली लोग भी नष्ट हो गए। इसलिए इस बुराई को जल्दी से जल्दी छोड़ दें।