प्रसंग; भगवान राम को वनवास हो गया, वे लक्ष्मण और देवी सीता के साथ चित्रकूट में रहने लगे, उधर अयोध्या में राजा दशरथ की मौत हो गई, भरत उनके अंतिम संस्कार और क्रियाकर्म के बाद श्रीराम को अयोध्या लौटा लाने के लिए……

आज हर कोई सबसे पहले स्वयं के बारे में सोचता है और परिवार के बारे में बाद में। यही सोच परिवारों में मनमुटाव बढ़ाती है। यदि स्वयं के हित से ऊपर परिवार हित के बारे में सोचेंगे तो परिवार के अन्य सदस्यों का नजरिया आपके प्रति सकारात्मक होगा और परिवार टूटने से बच जाएगा। रामायण में लक्ष्मण को राम की सेवा प्रिय है। वो सोते-जागते हर पल राम की सेवा में लीन है, लेकिन उनका ही छोटा भाई शत्रुघ्र भरत की परछाई है।

शत्रुघ्न का पूरा जीवन भरत की सेवा में गुजरा। लक्ष्मण ने कभी अपनी पसंद शत्रुघ्न पर नहीं थोपी कि तुम भी राम की ही सेवा में रहो। जब रघुवंश पर राम के वनवास का वज्रपात हुआ तो संभव था कि लक्ष्मण क्रोध में शत्रुघ्न को भरत से अलग कर देते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। परिवार की मर्यादा के लिए लक्ष्मण भी उतने ही कटिबद्ध थे जितने राम। परिवार में निजी हित उतने मायने नहीं रखते जितने परिवार के हित। जिस दिन हम यह बात समझ लेंगे हमारा परिवार भी रघुवंश हो जाएगा।

इन बातों पर हो परिवार में चर्चा

रामायण का एक छोटा सा प्रसंग है। भगवान राम को वनवास हो गया, वे लक्ष्मण और सीता के साथ चित्रकूट में रहने लगे। उधर अयोध्या में राजा दशरथ की मौत हो गई, भरत उनके अंतिम संस्कार और क्रियाकर्म के बाद राम को अयोध्या लौटा लाने के लिए चित्रकूट पहुंचते हैं। भरत जब राम के आश्रम में पहुंचते हैं तो देखते हैं कि वहां कई संत जुटे हैं। तीन बातों पर चर्चा चल रही है ज्ञान, गुण और धर्म। संतों के साथ बैठकर राम इन्हीं विषयों पर गहन चर्चा कर रहे थे। लक्ष्मण और सीता भी गंभीरता से सुन रहे हैं। थोड़ी देर तो भरत भी देखते ही रह गए। जिस राम को अपने नगर से निकालकर वन में भेज दिया गया हो। जिसके राजतिलक की घोषणा करने के बाद उसे संन्यासी बना दिया गया हो, वो कितने शांत मन से संतों के साथ बैठे हैं। फिर भरत आश्रम में पहुंचे और फिर राम-भरत के मिलन की घटना घटी। ये दृश्य देखने, पढऩे या सुनने में साधारण लगता है लेकिन इसके पीछे एक बहुत ही गंभीर और उपयोगी संदेश छिपा है।

हम परिवार के साथ बैठते हैं तो बातों का विषय क्या होता है। इस दृश्य में देखिए, एक परिवार के सदस्यों में क्या और कैसी बातें होनी चाहिए। अक्सर परिवारों में ऐसा नहीं होता, घर के सदस्य साथ बैठते हैं तो या तो झगड़े शुरू हो जाते हैं, पैसों पर विवाद होता है या फिर किसी तीसरे की बुराई की जाती है। इससे परिवार में अंशाति और असंतुलन आता है। हम जब भी परिवार के साथ बैठें तो चर्चा के विषय ज्ञान, गुण, धर्म और भक्ति होना चाहिए। इससे आपसी प्रेम तो बढ़ेगा ही, विवाद की स्थिति भी नहीं होगी। परिवार में हमारा बैठना सार्थक होगा।

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