सीख; अर्जुन जब कुरु राज्य पहुंचे तो वहां के द्वारपाल और लोगों ने अर्जुन से कहा कि आप इस नगर को युद्ध करके जीत नहीं सकते, क्योंकि जो व्यक्ति इस नगर में युद्ध के लिए प्रवेश करता है, उसकी मृत्यु हो जाती है, ऐसा इस राज्य को वरदान……
महाभारत में युधिष्ठिर को चक्रवती सम्राट बनाने के लिए राजसूय यज्ञ किया गया था। इसके लिए सभी राजाओं पर जीत हासिल करनी थी। इस काम के लिए अर्जुन ने विजय यात्रा शुरू कर दी।
जहां-जहां अर्जुन जा रहे थे, वहां के राजाओं को पराजित करते हुए आगे बढ़ रहे थे। जो राजा अर्जुन की सेवा स्वीकार कर रहे थे, अर्जुन उन पर कर लगाकर आगे बढ़ रहे थे। इस यात्रा के दौरान अर्जुन कुरु नाम राज्य में पहुंचे।
अर्जुन पहुंचे तो कुरु वहां राज्य के द्वारपाल और लोगों ने अर्जुन से कहा कि आप इस नगर को युद्ध करके जीत नहीं सकते, क्योंकि जो व्यक्ति इस नगर में युद्ध के लिए प्रवेश करता है, उसकी मृत्यु हो जाती है। ऐसा इस राज्य को वरदान मिला हुआ है।
अर्जुन ने कहा सोच-विचार करके कहा कि ठीक है, मैं यहां युद्ध नहीं करूंगा।
अर्जुन की बात सुनकर लोगों ने कहा कि युद्ध के अलावा अगर आपकी कोई इच्छा है तो वह पूरी हो सकती है।
अर्जुन ने कहा कि मैं हमारे भाई युधिष्ठिर को चक्रवर्ती सम्राट बनाना चाहता हूं। मुझे आपसे युद्ध नहीं करना है। आप बस मुझे कर के रूप में थोड़ा सा धन दे दीजिए। ये धन लेकर मैं लौट जाऊंगा।
लोगों ने अर्जुन की बात मानकर थोड़ा सा धन दे दिया। धन लेकर अर्जुन दूसरे राज्य की ओर बढ़ गए।
अर्जुन की सीख
इस किस्से में अर्जुन ने संदेश दिया है कि हर शत्रु को युद्ध करके पराजित नहीं किया जा सकता है, कुछ शत्रुओं के सामने बुद्धि और धैर्य का उपयोग करना चाहिए। बुद्धि का उपयोग करते हुए भी शत्रुओं की हराया जा सकता है। अगर हम शक्तिशाली हैं तो हमें अहंकार से भी बचना चाहिए। इस किस्से में अर्जुन ने अपनी शक्ति का घमंड नहीं किया और लोगों की बात समझकर युद्ध करने का विचार छोड़ दिया। हमें भी घमंड छोड़कर बुद्धि और धैर्य बनाए रखना चाहिए।