पुराने समय में वृत्तासुर नाम के एक असुर का आतंक बढ़ गया था, इस असुर को सभी देवता पराजित नहीं कर पा रहे थे, उस समय दधिचि ऋषि ने देवताओं से कहा कि मेरे शरीर की हड्डियों से आप वज्र नाम का शस्त्र……

शिव जी ने भी विष्णु जी की तरह ही समय-समय पर 19 अवतार लिए हैं। इन 19 अवतारों से में एक हैं पिप्पलाद अवतार। पिप्पलाद एक ऋषि मुनि थे। इनके पिता दधिचि मुनि थे। पिप्पलाद अवतार की कथा शनिदेव से जुड़ी है। जानिए ये कथा…

शिव महापुराण के कथाकार और ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, पुराने समय में वृत्तासुर नाम के एक असुर का आतंक बढ़ गया था। इस असुर को सभी देवता पराजित नहीं कर पा रहे थे। उस समय दधिचि ऋषि ने देवताओं से कहा कि मेरे शरीर की हड्डियों से आप वज्र नाम का शस्त्र बनाइए और उस वज्र से वृत्तासुर का अंत हो जाएगा। देवताओं की भलाई के लिए दधिचि ऋषि ने अपनी देह त्याग दी और बाद में देवताओं ने ऋषि की हड्डियों से वज्र बनाया। देवराज इंद्र ने इस वज्र से असुरों को पराजित कर दिया।

दधिचि मुनि के पुत्र का नाम पिप्पलाद था। दधिचि के पुत्र का जन्म पीपल के नीचे हुआ था, इस कारण इस बच्चे का नाम पिप्पलाद रखा गया। बच्चे के जन्म से पहले ही दधिचि की मृत्यु हो गई थी। जब पिप्पलाद बड़े हुए तो उन्होंने देवताओं से पूछा कि मेरे पिता की इतनी जल्दी मृत्यु कैसे हो गई। उस समय उन्हें मालूम हुआ कि शनि की अशुभ दृष्टि की वजह से दधिचि मुनि की मृत्यु का योग बना है।

पिप्पलाद मुनि ने अपनी तपस्या से शिव जी को प्रसन्न किया था। वे बड़े तपस्वी थे। जब उन्हें मालूम हुआ कि शनि के कारण उनके पिता की इतनी जल्दी मृत्यु हुई तो उन्होंने शनि को ग्रह मंडल से हटने का शाप दे दिया।

शाप के असर से शनि ग्रह मंडल से हटने लगे तो सभी देवताओं ने पिप्पलाद मुनि से अपना शाप वापस लेने की प्रार्थना की। देवताओं की प्रार्थना से पिप्पलाद मुनि ने शनि को क्षमा कर दिया, लेकिन उन्होंने से शनि से कहा कि अब से किसी बच्चे को 16 वर्ष की उम्र तक शनि दोष का सामना न करना पड़े, शनि बच्चों पर अशुभ दृष्टि नहीं डालेंगे।

शनि देव पिप्पलाद मुनि की इस बात के लिए मान गए। तभी से कुंडली के शनि दोष दूर करने के लिए पिप्पलाद महादेव की पूजा करने की परंपरा चली आ रही है। पिप्पलाद महादेव के भक्तों पर शनि दोषों का असर नहीं होता है। ऐसी मान्यता है।

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *