सीख; स्वामी विवेकानंद जी भगवान के नामों की महिमा बता रहे थे, कई लोग उनकी बातें ध्यान से सुन रहे थे, सभी शांत थे, लेकिन व्याख्यान के बीच में एक व्यक्ति उठा और कहने लगा कि आप ये क्या बार-बार भगवान के नामों के एक जैसे शब्द…….
स्वामी विवेकानंद से जुड़ी घटना है। स्वामी जी भगवान के नामों की महिमा बता रहे थे। कई लोग उनकी बातें ध्यान से सुन रहे थे। सभी शांत थे, लेकिन व्याख्यान के बीच में एक व्यक्ति उठा और कहने लगा कि आप ये क्या बार-बार भगवान के नामों के एक जैसे शब्द बोल रहे हैं। शब्दों में क्या रखा है? रट-रटकर शब्द क्यों बोलते हो? लोग साधु-संत के दिए मंत्र, शब्द क्यों जपते रहते हैं, इनका महत्व क्या है?
वहां बैठे सभी लोगों ने उस व्यक्ति की बातें सुनी। अब सभी इंतजार करने लगे कि विवेकादनंद जी क्या जवाब देंगे।
स्वामी जी ने उस व्यक्ति से कहा कि तुम मूर्ख हो।
स्वामी जी के मुंह से ये बात सुनकर सभी हैरान थे। किसी ने नहीं सोचा था कि वे इस तरह से कुछ कहेंगे। वह व्यक्ति भी हैरान था। उसने कहा कि स्वामी जी आप तो संत हैं। शांत रहते हैं, आपको गुस्सा भी नहीं आता है, मैंने आपसे ऐसा क्या कह दिया है, जिसकी वजह से आप मुझे मुर्ख कह रहे हैं?
विवेकानंद जी ने कहा कि मैंने तो एक शब्द कहा है, आप इतनी सी बात पर गुस्सा हो गए। ये तो सिर्फ शब्द ही हैं, मैंने आपको मारा नहीं है। हमारे अपशब्द किसी को भी गुस्सा दिला सकते हैं। जब हम बार-बार शुभ शब्द दोहराते हैं तो हमारा मन शांत होता है। भगवान के नाम, मंत्र शुभ शब्द हैं, इनका उच्चारण करने से हमें भगवान की कृपा मिलती है, मन शांत होता है, नकारात्मक विचार खत्म होते हैं और सकारात्मकता बढ़ती है। इसीलिए हमें बार-बार जप करते रहना चाहिए, ताकि अशांति और बुराइयां हमसे दूर रहे।
विवेकानंद जी की सीख
इस किस्से में स्वामी जी ने संदेश दिया है कि अच्छे शब्द, भगवान के नाम का बार-बार जप करने से पॉजिटिविटी बढ़ती है। जब हम भगवान का नाम लेते हैं तो दिमाग शांत होता है, नकारात्मक विचार खत्म हो जाते हैं। इसीलिए पूजा-पाठ में, भजन में भगवान के नामों का जप करते रहना चाहिए।