सीख; एक दिन बाबा साहब को अपने बेटे यशवंत राव पर बहुत गुस्सा आ रहा था, ये घटना 1943 की है, उस समय बाबा साहब वायसराय की काउंसिल में श्रम और पीडब्ल्यूडी विभाग के मंत्री बने थे, वे हर काम पूरी ईमानदारी……

बाबा साहब अंबेडकर को गुस्सा बहुत कम आता था, लेकिन एक दिन उन्हें अपने बेटे यशवंत राव पर बहुत गुस्सा आ रहा था। ये घटना 1943 की है। उस समय बाबा साहब वायसराय की काउंसिल में श्रम और पीडब्ल्यूडी विभाग के मंत्री बने थे। वे हर काम पूरी ईमानदारी से करते थे।

डॉ. अंबेडकर के बेटे यशवंत राव से एक बड़े ठेकेदार संपर्क किया। दरअसल, वह ठेकेदार गलत तरीके से कोई सरकार की ओर से बड़ा काम लेना चाहता था। यशवंत राव ठेकेदार की बातों में आ गए। दोनों के बीच ये बात तय हुई थी कि निर्माण का बड़ा काम उस ठेकेदार को मिल जाएगा तो वह यशवंत राव को कमीशन देगा। युवा यशवंत का मन भटक गया, पैसों की ओर आकर्षित हो गया। यशवंत ने अपने पिता से कहा, ‘आप ये काम इस ठेकेदार को दे दीजिए, इसके लिए हमें कमीशन मिल जाएगा।

जब ये बात बाबा साहब को मालूम हुई तो उन्होंने गुस्सा में कहा कि मैं यहां राष्ट्र सेवा के लिए बैठा हूं, तुम जैसी संतान पालने के लिए नहीं। कर्तव्य सबसे महत्वपूर्ण है, इसके लिए परिवार के सदस्यों की आकांक्षाओं पर नियंत्रण होना चाहिए। अगर मैं तुम्हारी बात मानता हूं तो मैं बहुत बड़ा अपराध करूंगा। आज के बाद ऐसी बात खुद भी कभी मत करना और मेरे सामने भी मत लाना।

कहानी की सीख

जब हमारे पास बड़ा पद और अधिकार हों तो हमें ज्यादा सतर्क रहना चाहिए। बड़े पद पर कई तरह के प्रलोभन मिलते हैं, लेकिन हमें किसी गलत काम में नहीं उलझना चाहिए। परिवार के सदस्यों की अपेक्षाएं होती हैं, कुछ सदस्यों के मन में लालच भी आ सकता है, लेकिन हमें अपने अधिकारों का गलत उपयोग नहीं करना चाहिए। भ्रष्टाचार लालच से ही पैदा होता है।

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