सीख- एक दिन शिव-पार्वती जी अपनी होने वाली संतान के बारे में बातें कर रहे थे, तभी उन्हें जानकारी मिली कि उनके अंश से जो संतान पैदा हुई है, जिसे जंगल में कृतिकाएं पाल रही हैं, उसका नाम कार्तिकेय रखा गया है, वह बहुत वीर…….

कार्तिकेय स्वामी के जन्म से जुड़ा किस्सा है। एक बार ऐसा हुआ कि शिव जी के अंश को अग्नि, पर्वत, ऋषिमुनियों की पत्नियां और गंगा भी संभाल नहीं पा रही थीं।

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शिवांश का तेज इतना अधिक था कि कोई भी उसे संभाल नहीं सका, तब गंगा जी ने उस अंश को सरकंडे के एक वन में त्याग दिया। छह मुख वाले उस बालक का पालन कृतिकाओं ने किया था, इस कारण उस बालक का नाम पड़ा कार्तिकेय।

जंगल में धीरे-धीरे वह बालक बड़ा होने लगा। कृतिकाएं उस बालक का ध्यान रखती थीं। एक दिन शिव-पार्वती अपनी होने वाली संतान के बारे में बातें कर रहे थे, तभी उन्हें जानकारी मिली कि उनके अंश से जो संतान पैदा हुई है, जिसे जंगल में कृतिकाएं पाल रही हैं। उसका नाम कार्तिकेय रखा गया है, वह बहुत वीर है।

संतान की जानकारी मिलते ही शिव जी ने अपने दूत वीरभद्र, विशालाक्ष, शंभुकर्ण, नंदीश्वर, गौकर्णास्य, दधिमुख को बुलाया। शिव जी सभी दूतों से कहा, ‘तुम उस सरकंडे के वन में जाओ, वहां एक बालक है जो अपनी वीरता का प्रदर्शन कर रहा है, वह हमारा अंश है, हमारा पुत्र है, उसे सम्मान के साथ लेकर आओ।’

शिव जी के दूत उस वन में पहुंचे और कार्तिकेय को कृतिकाओं के साथ बड़े सम्मान से शिव जी के सामने ले आए। उस बालक को देखकर कैलाश पर्वत पर आनंद छा गया। शिव जी और पार्वती तुरंत अपने सिंहासन से उतरे और उस बालक को गले लगाया और उसे बताया कि तुम हमारे पुत्र हो। तुम इतने वीर हो कि आज से तुम देवताओं के सेनापति हो। इसके बाद कार्तिकेय स्वामी ने ही तारकासुर को मारा था।

सीख – इस कथा का संदेश ये है कि माता-पिता अपनी संतान के लिए हमेशा जागरुक रहें। किसी की संतान कहां है, क्या कर रही है और कैसे आप उसे परिवार से जोड़ सकते हैं, इसके लिए बहुत सतर्क रहें। कार्तिकेय का जन्म सरकंडे के उस वन में लीला वश हुआ था, लेकिन बाद में शिव-पार्वती ने उसे अपने पास वापस बुलाया और उस बालक को बताया कि हम तुम्हारे माता-पिता हैं। इस तरह कार्तिकेय को अपने परिवार से जोड़ा। आज काफी लोग पढ़ाई या कमाई के लिए घर से दूर चले जाते हैं, लेकिन अगर बच्चे अपने परिवार का महत्व समझ जाए तो व्यस्त होने के बाद भी वे अपने परिवार से जुड़े रहेंगे।

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