क्या आप जानते हैं चोरी और डकैती दोनों में क्या अंतर होता है? किसके लिए क्या सजा मिलती है और कब पुलिस आपको गिरफ्तार कर सकती है, जानिए सबकुछ
भारत में हर अपराध से निपटने के लिए कानून बने हैं. जब भी कोई आपका सामान आपकी अनुमति के बिना लेता है. या उस पर जबरदस्ती कब्जा करने की कोशिश करता है. तो उसे चोरी, लूट या डकैती की श्रेणी में रखा जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि चोरी और डकैती में अंतर क्या है? किस अपराध में कितनी सजा होती है? कब चोरी को डकैती की श्रेणी में या लूट की श्रेणी में रखा जाता है? पुलिस कब गिरफ्तार कर सकती है? आइए जानते हैं इन सभी सवालों के जवाब. हर किसी को इसकी जानकारी होनी चाहिए.
भारतीय न्याय संहिता की धारा 378 से 402 में चोरी, लूट, डकैती जैसे अपराध का विस्तृत वर्णन किया गया है. चोरी, डकैती या लूट का अंतर समझने के लिए सबसे जरूरी है कि इसकी डिग्री जानना. जैसे मारपीट है या धमकी. या फिर डराया गया है. तीनों में ही ये चीजें होती हैं, लेकिन उनका स्तर कितना है, इस पर अपराध की डिग्री तय होती है. धारा 378 कहती है कि कोई व्यक्ति जब जबरन या बेईमानी की नीयत से किसी की चल संपत्ति जैसे रुपया, घड़ी, सामान आदि ले लेता है, तो यह चोरी कहलाता है. इसके लिए 3 साल तक जेल और जुर्माने का प्रावधान है. लेकिन अगर चोरी किसी के घर में हुई है, तो 7 साल तक की सजा हो सकती है.
लूट कब हो जाती डकैती
लेकिन जब कोई सामान चोरी करने के लिए किसी को धमकाता है. उसे डराता है या मारपीट करता है, तो यह लूट की श्रेणी में आ जाता है. लूट चोरी का एक उग्र रूप है. इसमें 10 साल का कठोर कारावास और जुर्माने की सजा का प्रावधान है. लेकिन यही लूट अगर सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले यानी अंधेरे में की गई हो, तो दोषी को 14 वर्ष की उम्रकैद और जुर्माना दोनों दी जा सकती है.अब बात डकैती की. डकैती चोरी और लूट से बड़ा अपराध है. जब 5 या 5 से ज्यादा लोग एक साथ मिलकर किसी की संपत्ति पर लूटकर या चोरी कर ले जाते हैं, तो उसे डकैती की श्रेणी में रखा जाता है. इस अपराध में उम्रकैद या 10 साल तक का कठिन कारावास एवं जुर्माना की सजा हो सकती है.
जमानती अपराध
सबसे अहम बात, चोरी-लूट हो या डकैती, तीनों ही गैर जमानती अपराध हैं. पुलिस तुरंत बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर सकती है. जमानत भी सिर्फ अदालत ही दे सकती है. ज्यादातर इसमें सेशन कोर्ट से जमानत खारिज हो जाती है. नए कानूनों के तहत इसमें कुछ बदलाव भी किए गए हैं, ताकि आरोपी किसी भी तरह से बच न पाए. कई अपराधों में अब इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य भी सबूत के तौर पर माने जाएंगे. पहले ऐसा संभव नहीं था और आरोपी आसानी से बच जाते थे.