सीख; वसुदेव और देवकी जी महल में अकेले बैठे हुए थे, तभी वहां द्वारपाल आया और बोला- महाराज, जैसा आपने आदेश दिया था, नारद मुनि जी को आमंत्रण भेजने का, हमने वो भेज दिया था और नारद मुनि महल में पधार…….

भगवान कृष्ण के माता-पिता वसुदेव और देवकी अपने महल में अकेले बैठे थे। तभी द्वारपाल आया और उसने कहा- महाराज, जैसा आपने आदेश दिया था, भगवान नारद मुनि को आमंत्रण भेजने का, हमने वो भेज दिया था और नारद मुनि महल में पधार चुके हैं।

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वसुदेव खुशी से झूम उठे। उन्होंने नारद जी का काफी स्वागत-सत्कार किया। सारी औपचारिकताओं से निपट कर जब वसुदेव-देवकी नारद जी के पास बैठे तो उन्होंने पूछा- कहिए महाराज वसुदेव, आपने मुझे किस लिए याद किया?

वसुदेव बोले- मुनिश्रेष्ठ, हमारा परिवार काफी समृद्ध है। हमारी संतानें भी बहुत अच्छी हैं। कुटुंब, परिवार और समाज की सेवा में लगी रहती हैं। कृष्ण की संतानों की तो बात ही अलग है। सब एक से बढ़कर एक हैं। लेकिन, इन दिनों मैं और देवकी दोनों ही काफी अकेलापन महसूस कर रहे हैं।

नारदजी ने पूछा- ऐसा क्यों महाराज वसुदेव?

वसुदेव बोले – ऐसा इसलिए क्योंकि सारी संतानें और उनके बच्चे अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में लगे हैं। हम दोनों बूढ़े हो चुके हैं तो महल में ज्यादा समय बीत रहा है, ऐसे में हमें ये अकेलापन परेशान कर रहा है। आप बताइए, हमें क्या करना चाहिए?

नारद जी ने जवाब दिया – आपको सत्संग करना चाहिए। इससे आपकी मानसिक अवसाद वाली स्थिति में सुधार होगा और आपका ये अकेलापन भी दूर हो जाएगा।

तब वसुदेव बोले – तो आपसे ही हम सत्संग करते हैं। आपसे बेहतर ज्ञानी हमें कहां मिलेगा।

इसके बाद नारद जी ने वसुदेव और देवकी के साथ सत्संग किया। उन्हें कई गूढ़ ज्ञान की बातें समझाईं। उन्हें भक्ति और ज्ञान से जुड़े कई किस्से सुनाए। ये सब सुनकर वसुदेव और देवकी का मानसिक अवसाद दूर हुआ। वो अपने को पहले से बेहतर महसूस करने लगे। उनकी मानसिक पीड़ा दूर हो गई।

सबकः ये तय है कि हर इंसान के जीवन में बुढ़ापा आना है। नई पीढ़ी अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में लग जाएगी। ऐसे में हमें समय का सदुपयोग करना चाहिए। ये सदुपयोग ही सत्संग है। ऐसे लोगों का साथ जो हमारी शारीरिक और मानसिक दोनों स्थितियों को सुधार दें।

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