सीख; एक बार गुरु नानक देव गोरख मत्था नाम की जगह पर पहुंचे, वहां वे एक पीपल के सूखे पेड़ नीचे बैठ गए, कुछ ही समय बाद वह पेड़ हरा-भरा हो गया, उस समय गोरख मत्था में सिद्ध नाथों की बस्ती हुआ करती थी……

गुरु नानक देव यात्राएं बहुत करते थे। यात्रा करते हुए एक बार वे गोरख मत्था नाम की जगह पर पहुंचे। गोरख मत्था में गुरु नानक पीपल के सूखे पेड़ नीचे बैठ गए। कुछ ही समय बाद वह पेड़ हरा-भरा हो गया।

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उस समय गोरख मत्था में सिद्ध नाथों की बस्ती हुआ करती थी। सिद्ध नाथ वहां बहुत ही कठोर तप करते थे, इस वजह से वहां रहने वाले आम लोग उन क्रोधी योगियों से डरने लगे थे। सिद्ध नाथ वे लोग थे, जिन्होंने संसार छोड़ दिया था और योगी हो गए थे। सिद्ध योगी अपनी मस्ती में जीवन जीते, उन्हें संसार से कोई लेना-देना नहीं था।

जब सिद्ध नाथों को पेड़ के हरे-भरे की बात मालूम हुई तो वे नानक देव से मिलने पहुंचे। सिद्ध नाथों और गुरु नानक के बीच बातचीत शुरू हुई, इसे सिद्ध गोष्ठी के नाम से जाना जाता है। कुछ योगियों ने नानक से पूछा, ‘जो तप हम कर रहे हैं और जो तप आप कर रहे हैं, इसमें अंतर क्या है?’

गुरु नानक बोले, ‘एक खास किस्म का कपड़ा पहनने से योग नहीं हो जाता। शरीर पर केवल भस्म लगाने से योग-साधना नहीं होती है। कानों में मुद्रा धारण करने से और सिर मुंडवा लेने से योग नहीं होता है। संसार से भागना योग नहीं पलायन है। योगी की नजरों में सब कुछ समान होना चाहिए। आप लोग समाज छोड़कर क्यों भाग रहे हैं? आपकी तपस्या का लाभ समाज को मिलना चाहिए। मैं तो यही करने की कोशिश कर रहा हूं कि अगर मेरे पास थोड़ा सा भी तप है तो दोनों हाथों से लोगों को उसका लाभ दूं। आज लोगों को तप की बहुत आवश्यकता है।’

गुरु नानक की बातें सुनकर सभी ने उन्हें प्रणाम किया।

सीख

गुरु नानक ने लोगों को समझाया था कि धर्म का अर्थ है- सभी की नि:स्वार्थ भाव से सेवा करना। संसार छोड़कर रहना धर्म का संदेश नहीं है। संसार में रहकर सभी की भलाई करना ही धर्म है।

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