सीख; विद्यासागर जी ने भीख मांग रहे उस छोटे बच्चे से पूछा, ‘तुमने कितने दिनों से खाना नहीं खाया है, बच्चे ने कहा, ‘बहुत दिन हो गए हैं…….
एक छोटा बच्चा भीख मांग रहा था। उस समय वहां से ईश्वरचंद्र विद्यासागर गुजर रहे थे। उन दिनों बंगाल में सूखा पड़ा था। अच्छे-अच्छे लोग भूखे मर रहे थे। विद्यासागर जी ये बात जानते थे।
विद्यासागर जी ने भीख मांग रहे उस छोटे बच्चे से पूछा, ‘तुमने कितने दिनों से खाना नहीं खाया है?’
बच्चे ने कहा, ‘बहुत दिन हो गए हैं।’
विद्यासागर जी बोले, ‘तुम एक पैसा मांग रहे हो, मैं तुम्हें दो पैसे दूंगा, लेकिन तुम्हें ये बताना पड़ेगा कि तुम इन पैसों का क्या करोगे?’
बच्चे ने सोचा कि ये मेरी गरीबी का मजाक बना रहे हैं। बड़े लोगों को मजबूर लोगों के साथ खेलने में मजा आता है। बच्चा बोला, ‘दो क्यों, आप मुझे चार पैसे दीजिए, मैं आपको हिसाब बता देता हूं। मैं दो पैसों की चीजें खरीद लूंगा और दो पैसे मां को दे दूंगा।’
मां का नाम सुनकर विद्यासागर जी बोले, ‘मैं चार पैसे की जगह चार आने दे दूं तो?’
अब राशि बढ़ गई थी तो बच्चे ने कहा, ‘दो आने में खाने की चीज खरीद लूंगा, इससे मेरी मां का काम चल जाएगा और बाकी दो आने में मैं फल बेचने का काम करूंगा।’
विद्यासागर जी ने कहा, ‘ठीक है फिर, एक रुपया ले जा।’
उस समय एक रुपया बहुत बड़ी रकम हुआ करता था। उस बच्चे ने रुपया लिया और वहां से चला गया। करीब दस साल बाद विद्यासागर जी फिर उसी जगह पहुंचे तो वहां युवक उनके पास पहुंचा। युवक ने उन्हें प्रणाम किया और बोला, ‘आपने मुझे नहीं पहचाना, लेकिन मैं आपको पहचान गया हूं। आपसे निवेदन है, आप मेरी दुकान पर चलें।’
ईश्वरचंद्र विद्यासागर उस युवक के साथ उसकी दुकान पर पहुंचे। युवक ने कहा, ‘कई साल पहले आपने मुझे एक रुपया दिया था।’
विद्यासागर जी बोले, ‘मैंने तुम्हें उस दिन भी कहा था और आज भी कहूंगा कि रुपया मांगना आसान है, लेकिन रुपया कमाना बहुत मुश्किल है। मैंने तुम्हें भीख नहीं दी थी। मैंने तुम्हें कमाने का अवसर दिया था। मैं बहुत खुश हूं कि तुमने धन से धन कमाया।’
सीख
इस किस्से से हमें संदेश मिलता है कि अधिकतर लोगों के पास धन बहुत सीमित है। ये हमारी योग्यता पर निर्भर करता है कि हम धन से और धन कमा पाते हैं या नहीं। हम धन को कैसे असीमित कर सकते हैं, ये हम पर ही निर्भर करता है।