सीख; दो भाई थे सुंद और उपसुंद, ये दोनों दैत्यराज निकुंभ के बेटे थे, एक के बिना दूसरा न तो कुछ खाता और न ही किसी से कुछ बातचीत करता था, दोनों का आचरण ऐसा था कि जैसे…….
नारद मुनि पांडवों को समझा रहे थे कि जब तक आप पांचों एक साथ रहेंगे, आपको कोई पराजित नहीं कर पाएगा। अगर आपके बीच जरा सी भी फूट पड़ी तो आपका फायदा दूसरे लोग उठा लेंगे।
नारद मुनि ने पांडवों को एक कहानी सुनाई, ‘दो भाई थे सुंद और उपसुंद। ये दोनों दैत्यराज निकुंभ के बेटे थे। एक के बिना दूसरा न तो कुछ खाता और न ही किसी से कुछ बातचीत करता था। वे दोनों एक-दूसरे के लिए हमेशा अच्छी बातें कहते थे। इन दोनों का आचरण ऐसा था कि जैसे एक आत्मा दो शरीर में रह रही है।
दोनों भाइयों ने तीनों लोकों पर विजय पाने के लिए तपस्या शुरू कर दी। इनकी तपस्या से सभी देवता घबरा गए। तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उनके सामने प्रकट होकर वर मांगने के लिए कहा। दोनों भाइयों ने वर मांगा कि हम दोनों भाइयों को छोड़कर तीनों लोकों में हमें कोई मार न सके। ब्रह्मा जी ने उन्हें ये वर दे दिया।
वरदान मिलने के बाद दोनों भाई मौज-मस्ती, भोग-विलास में डूब गए। ऋषि-मुनियों के आश्रम को उजाड़ दिया। इन भाइयों से ऋषि-मुनि, देवता सभी परेशान हो गए। देवता और ऋषि ब्रह्मा जी के पास पहुंचे तो ब्रह्मा जी ने विश्वकर्मा जी से कहा कि एक सुंदर स्त्री की रचना करो। उसका नाम तिलोत्तमा होगा। इस सुंदर स्त्री को इन दोनों भाइयों के बीच भेज दो।
विश्वकर्मा जी ने सुंदर स्त्री की रचना कर दी और इन दोनों भाइयों के बीच भेज दी। स्त्री के आने बाद दोनों भाइयों की एकता टूट गई। दोनों अलग-अलग होकर तिलोत्तमा को पाने की कोशिश करने लगे। इस वजह से दोनों भाइयों में मतभेद हो गया और दोनों एक-दूसरे से लड़कर मर गए।’
सीख
नारद मुनि ने पांडवों को समझाया था कि भोग-विलास इंसानों को एक जुट नहीं रहने देता है। गलत काम के लिए कुछ लोग थोड़े समय के लिए ही एक रह सकते हैं। बाद में उनके बीच मतभेद हो जाएगा। इस कहानी में दो सगे भाई भी वासना में डूबकर एक-दूसरे के दुश्मन हो गए और आपस में लड़कर मर गए। इसलिए जिन्हें एकता रखनी हो, उन्हें अपना आचरण अच्छा रखना चाहिए।