सीख; बुआ को देखकर श्रीकृष्ण रथ से नीचे उतरे, श्रीकृष्ण उन्हें प्रणाम करते, उससे पहले कुंती झुकीं और श्रीकृष्ण को प्रणाम करने लगीं, श्रीकृष्ण ने कहा, ‘आप मेरी बुआ हैं, मैं आपका माता की तरह सम्मान करता……

महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। पांडव राजा बन चुके थे। श्रीकृष्ण ने निर्णय लिया कि अब मैं द्वारिका जाऊंगा। श्रीकृष्ण रथ पर बैठ आगे बढ़े, तो सामने कुंती खड़ी थीं। कुंती श्रीकृष्ण की बुआ थीं।

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बुआ को देखकर श्रीकृष्ण रथ से नीचे उतरे। श्रीकृष्ण उन्हें प्रणाम करते, उससे पहले कुंती झुकीं और श्रीकृष्ण को प्रणाम करने लगीं। श्रीकृष्ण ने कहा, ‘आप मेरी बुआ हैं, मैं आपका माता की तरह सम्मान करता हूं। मेरा नियम भी है कि हर रोज मैं आपको प्रणाम करता हूं, आज भी कर रहा था, लेकिन आपने ये क्या किया? आपने मुझे क्यों प्रणाम किया?’

कुंती ने कहा, ‘कृष्ण, कुछ वर्षों के बाद मेरा जीवन पूरा हो जाएगा। मैं जानती हूं कि तुम मेरे भतीजे ही नहीं, भगवान भी हो। अब मुझे भक्त बन जाने दो। तुम चले जाओगे। एक बार भगवान बन जाओ।’

श्रीकृष्ण ने कहा, ‘ठीक है। भगवान से सभी लोग कुछ न कुछ मांगते हैं, आप भी कुछ मांग लीजिए।’

कुंती ने कहा, ‘देना ही चाहते हो तो मुझे दुख दो।’

ये सुनकर श्रीकृष्ण बोले, ‘दुख? मैं आपको जानता हूं, आपके जीवन में कभी सुख आया ही नहीं। ऊपर वाला कुछ लोगों का जीवन दुखों की प्रयोगशाला बना देता है, उनमें से एक आप हैं। फिर भी दुख मांग रही हैं।’

कुंती ने कहा, ‘दुख में भगवान बहुत याद आता है। कुछ दुख तो ऐसे आते हैं कि जब हम भगवान का कंधा पकड़ कर उनके और निकट चले जाते हैं। हमें लगता है कि हम भगवान का कंधा पकड़ उनसे कुछ कहे, कुछ पूछें। इसलिए मुझे दुख दे दो।’

श्रीकृष्ण बोले, ‘ठीक है, जैसी आपकी इच्छा।’

सीख

यहां भगवान से दुख मांगने का मतलब ये है कि जीवन में दुख तो आएगे ही, आप मांगों या न मांगो। कुछ लोगों के जीवन में तो रोज सुबह-सुबह नए-नए दुख आ जाते हैं। अगर हम ये मान लें कि सुख आएगा तो दुख भी आएगा और दुख के समय हमें भगवान के निकट चले जाना चाहिए, भक्ति करनी चाहिए। ऐसा करने से दुख को सहन करने की शक्ति बढ़ जाती है। यही बहुत बड़ा सहारा होता है।

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