सीख; एक दिन सूरदास जी के गुरु वल्लभाचार्य मानसिक पूजा कर रहे थे, उस समय सूरदास जी गुरु के पास बैठकर श्रीकृष्ण का ध्यान रहे थे, गुरु वल्लभाचार्य मानसिक पूजा करते समय……

माना जाता है कि उन्हें दिखाई नहीं देता था सूरदास का जन्म एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बाद में वे आगरा और मथुरा के बीच गऊघाट पर रहने लगे थे। वहीं सूरदास जी की मुलाकात वल्लभाचार्य जी से हुई थी और सूरदास ने उन्हें गुरु बना लिया था।

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वल्लभाचार्य को ऐसे मालूम हुआ कि सूरदास पर है श्रीकृष्ण की कृपा

एक दिन सूरदास जी के गुरु वल्लभाचार्य मानसिक पूजा कर रहे थे। उस समय सूरदास जी गुरु के पास बैठकर श्रीकृष्ण का ध्यान रहे थे। गुरु वल्लभाचार्य मानसिक पूजा करते समय श्रीकृष्ण को हार नहीं पहना पा रहे थे। सूरदास जी ने अपने गुरु की मानसिक पूजा के बारे में जान लिया और बोला कि हार की गांठ खोलकर भगवान के गले में पहना दें और फिर गांठ लगा दें। ये बाद सुनकर गुरु वल्लभाचार्य हैरान रह गए कि उनकी मानसिक पूजा के बारे में सूरदास जान गए थे। वल्लभाचार्य जी जान गए कि सूरदास पर श्रीकृष्ण की असीम कृपा है।

सूरदास ने अपने गुरु वल्लभाचार्य पर ज्यादा कुछ क्यों नहीं लिखा?

संत सूरदास जी को समझ आ गया था कि उनके जीवन के समापन का समय निकट आ गया है। सूरदास जी के अंतिम समय में उनके कई भक्त उनके पास पहुंच गए थे। उस समय सूरदास जी के गुरु भाई चतुर्भुज जी ने पूछा कि आपने श्रीकृष्ण के लिए खूब लिखा, लेकिन हमारे गुरु वल्लभाचार्य जी के लिए कुछ क्यों नहीं लिखा?

सूरदास जी ने कहा कि मैं लिख तो सकता था, लेकिन मेरे लिए श्रीकृष्ण और वल्लभाचार्य जी में कोई अंतर ही नहीं है, मेरे लिए दोनों एक समान हैं। मैं जब श्रीकृष्ण पर लिखता तो वल्लभाचार्य जी की छवि मेरे मन में आ जाती थी। इसके बाद अंतिम समय सूरदास जी ने कुछ पक्तियां गुरु के लिए भी रच दी थीं।

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