सीख; एक दिन किसी भक्त ने आश्रम में गाय का दान किया, शिष्य बहुत खुश हुआ, कुछ दिन तक गुरु और शिष्य दोनों में रोज ताजे दूध का सेवन किया, लेकिन एक दिन वह……….
महाभारत में कौरव और पांडवों की कथा के माध्यम से सुखी और सफल जीवन के सूत्र बताए गए हैं। इस ग्रंथ में कई ऐसी नीतियां हैं, जिनका पालन किया जाए तो हम कई बाधाओं से बच सकते हैं। जानिए महाभारत की एक नीति और उस नीति का महत्व बताने वाली लोक कथा…
दु:खैर्न तप्येन्न सुखै: प्रह्रष्येत् समेन वर्तेत सदैव धीर:।
दिष्टं बलीय इति मन्यमानो न संज्वरेन्नापि ह्रष्येत् कथंचित्।।
ये महाभारत के आदिपर्व में बताई गई नीति है। इसके अनुसार हमें विपरीत समय में यानी कठिनाइयों से दुखी नहीं होना चाहिए। जब सुख के दिन हों, तब भी हमें बहुत ज्यादा प्रसन्न नहीं होना चाहिए। सुख हो या दुख, हमें हर हाल में समभाव रहना चाहिए। सोच सकारात्मक रखनी चाहिए। जो लोग इस नीति का पालन करते हैं, वे ही धीर पुरुष यानी समझदार इंसान कहलाते हैं।
लोक कथा के अनुसार पुराने समय में एक संत अपने शिष्य के साथ आश्रम में रहते थे। एक दिन किसी भक्त ने आश्रम में गाय का दान किया। शिष्य बहुत खुश हुआ और उसने अपने गुरु को ये बात बताई तो गुरु ने सामान्य स्वर में कहा कि चलो अच्छा है अब तुम रोज दूध का सेवन करो और हमें भी दो।
कुछ दिन तक गुरु और शिष्य दोनों में रोज ताजे दूध का सेवन किया, लेकिन एक दिन वह भक्त आश्रम में वापस आया और अपनी गाय वापस ले गया। गाय के जाने से शिष्य दुखी हो गया। उसने गुरु से दुखी होते हुए कहा कि गुरुजी वह व्यक्ति अपनी गाय वापस ले गया है। गुरु ने कहा कि चलो अच्छा है, अब गाय का गोबर और गंदगी साफ नहीं करना पड़ेगी। ये सुनकर शिष्य ने पूछा कि गुरुजी आपको इस बात से दुख नहीं हुआ कि अब हमें ताजा दूध नहीं मिलेगा।
गुरु ने शिष्य से कहा कि हमें हर हाल में प्रसन्न ही रहना चाहिए। हमेशा सोच सकारात्मक बनाए रखनी चाहिए। यही सुखी जीवन का सूत्र है। जब गाय मिली तब हम प्रसन्न नहीं हुए और जब चली गए तब भी हम दुखी नहीं हुए। हमें विपरीत परिस्थिति में भी सकारात्मक रहना चाहिए।