सीख; एक दिन देव शर्मा से एक संत ने कहा, ‘आत्मिक शांति पाना चाहते हो, ये कैसे मिलती है, संत ने कहा ये बात समझना चाहते हो तो बकरी चराने वाला एक व्यक्ति है मित्रवान, तुम मित्रवान के पास जाओ………
एक दिन देवी पार्वती जी ने शिव जी से प्रश्न पूछा, ‘ये बात कितनी सही है कि भक्ति में वातावरण का भी प्रभाव होता है।’
शिव जी ने कहा, ‘इस बात को समझाने के लिए मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं। दक्षिण दिशा में पुरंदरपुर गांव में देव शर्मा नाम के पंडित रहते थे। वे बहुत भक्ति करते थे, लेकिन आत्मिक शांति कैसे मिले, इसके लिए वे लगातार कोशिश करते रहते थे।
एक दिन देव शर्मा से एक संत ने कहा, ‘आत्मिक शांति पाना चाहते हो, ये कैसे मिलती है, ये बात समझना चाहते हो तो बकरी चराने वाला एक व्यक्ति है मित्रवान। तुम मित्रवान के पास जाओ।’
संत ने देव शर्मा को मित्रवान के पास पहुंचने का रास्ता भी बता दिया। देव शर्मा संत के बताए हुए रास्ते पर चल दिए। जब एक जंगल में प्रवेश करते हैं तो वहां एक नदी के आसपास का वातावरण बहुत दिव्य था। पशु-पक्षियों की आवाजें आ रही थीं। उसी जगह पर मित्रवान ध्यान लगाए हुए बैठे थे। देव शर्मा ने मित्रवान को प्रणाम किया और कहा, ‘यहां का वातावरण इतना अच्छा है। आप ध्यान भी कर पाते हैं।’
मित्रवान ने कहा, ‘एक दिन जब में यहां बकरी चराने आया था तो सामने से एक शेर आ गया। मैं यहां से भागने लगा, क्योंकि मैंने सोचा था कि शेर मुझे और मेरी बकरी को खाएगा। मैंने दूर से देखा कि बकरी और शेर आमने-सामने खड़े हैं। शेर ने बकरी से कहा, ‘मैं तो तुझे खाने आया था, लेकिन यहां आने के बाद मेरा मन ही बदल गया है।’
इसके बाद शेर और बकरी दोनों मेरे पास आ गए। जैसे ही ये दोनों मेरे पास आए तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। जहां हम खड़े थे, वहीं पेड़ पर एक बंदर बैठा था। उसने बताया कि यहां शिव जी का एक मंदिर है। सुकर्मा नाम के एक भक्त ने ये मंदिर बनवाया था। जब उसने यहां भक्ति की तो उसे भगवान की कृपा मिली। यहां एक शिलालेख पर गीता का दूसरा अध्याय भी लिखा है। ये जगह ही ऐसी ही है, यहां किसी भक्त ने भक्ति करके इस स्थान को दिव्य बना दिया है। यहां जो भी आएगा, उसकी यात्रा उसकी आत्मा तक हो जाएगी।’
सीख
शिव जी ने देवी पार्वती को जो कथा सुनाई, उसमें हमारे लिए भी एक संदेश ये है कि वातावरण का प्रभाव हम पर अवश्य पड़ता है। इसलिए हमें हमेशा ऐसा काम करते रहना चाहिए, जिनसे घर, ऑफिस और मंदिर में हमारी नीयत साफ रहे, मन शांत रहे। हमारे कर्म अच्छे रहेंगे तो वातावरण अपने आप ही सकारात्मक हो जाएगा। वह जगह पवित्र हो जाएगी, जहां हम रहते हैं। ऐसी जगह पर जो भी आता है, उसे प्रसन्नता जरूर मिलती है।