सीख; याज्ञवल्क्य ने कहा, ‘मैं आपको रामकथा तो सुना दूंगा, लेकिन मैं जानता हूं कि आप मुझसे रामकथा क्यों सुनना चाहते हैं, आप स्वयं भी पूरी रामकथा अच्छी तरह…….
रामकथा में याज्ञवल्क्य और भारद्वाज ऋषि का प्रसंग बताया गया है। प्रयाग में त्रिवेणी संगम पर भारद्वाज ऋषि का आश्रम था। वहां साधु-संतों का मेला लगा हुआ था। दूर-दूर से साधु-संत आए हुए थे।
जब मेला खत्म हुआ तो सभी साधु-संत अपने-अपने आश्रम की ओर लौट रहे थे। उस समय भारद्वाजजी ने याज्ञवल्क्य ऋषि को रोक लिया। भारद्वाजजी ने उनसे निवेदन किया कि मैं आपसे रामकथा सुनना चाहता हूं।
याज्ञवल्क्य बोले, ‘मैं आपको रामकथा तो सुना दूंगा, लेकिन मैं जानता हूं कि आप मुझसे रामकथा क्यों सुनना चाहते हैं। आप स्वयं भी पूरी रामकथा अच्छी तरह जानते हैं। आप खुद बहुत अच्छे वक्ता हैं, लेकिन आप मेरे मुंह से रामकथा इसलिए सुनना चाहते हैं, ताकि पूरा समाज एक बार फिर रामकथा सुन सके। मेरी और आपकी बातचीत से जो रामकथा आएगी, वह एक नए दृष्टिकोण से लोगों तक पहुंचेगी।’
ये बातें सुनकर भारद्वाजजी बोले, ‘इन बातों के लिए आपको धन्यवाद। विद्वान व्यक्ति वही है जो अपनी और दूसरों की विद्वत्ता को समाज के लिए काम आने दे, उसे अपने अहंकार से प्रदूषित न होने दे।’
सीख- इस कथा का संदेश ये है कि भारद्वाज ऋषि रामकथा जानते थे, लेकिन उन्होंने याज्ञवल्क्य ऋषि के मुंह से रामकथा इसलिए कहलवाई, ताकि समाज को एक बार फिर से ये कथा सुनने को मिल सके और लोग नए दृष्टिकोण से कथा समझ सके। हमें भी विद्वानों का ऐसे ही उपयोग करना चाहिए। हमारे पास अपनी बुद्धि और योग्यता है, लेकिन दूसरों की योग्यता का भी सम्मान करें। विद्वानों को प्रेरित करें कि वे अपना ज्ञान दूसरों तक पहुंचाएं, ताकि समाज को नई बातें जानने का अवसर मिल सके।