सीख; पांच वर्ष बीतने के बाद चारों मित्र गांव के बाहर आकर मिले, चारों वहां से आगे बढ़े और जंगल के रास्ते अपने गांव की ओर निकल पड़े, रास्ते में उन्हें शेर की हड्डियां दिखाई दीं……..

एक प्रचलित लोक कथा के अनुसार किसी गांव में चार ब्राह्मण मित्र थे। एक दिन चारों ने सोचा कि हमें कोई विद्या सीखना चाहिए। चारों अलग-अलग दिशाओं में ज्ञान प्राप्त करने के लिए निकल पड़े। गांव से बाहर सभी ने तय किया था कि पांच वर्षों के बाद फिर से इसी जगह पर लौटकर आएंगे।

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> पांच वर्ष बीतने के बाद चारों मित्र गांव के बाहर आकर मिले। चारों वहां से आगे बढ़े और जंगल के रास्ते अपने गांव की ओर निकल पड़े। रास्ते में उन्हें शेर की हड्डियां दिखाई दीं। एक ब्राह्मण ने कहा कि मैं अपनी सिद्धि से इन हड्डियों को जोड़कर शेर का ढांचा बना सकता हूं। उसने तुरंत ही शेर का ढांचा बना दिया। दूसरे मित्र ने कहा कि मैं इसमें त्वचा, मांस और रक्त भर सकता है। दूसरे ब्राह्मण ने अपनी विद्या से शेर का शरीर बना दिया। अब वह बिना प्राण वाला शेर बन गया था। तीसरे ब्राह्मण ने कहा कि मैं अपनी विद्या से इसमें प्राण डाल सकता हूं। 

> ये सुनते ही चौथे ब्राह्मण ने कहा कि ऐसा मत करो, ये तो मूर्खता है। ये शेर हमें खा जाएगा। तीसरे ब्राह्मण ने कहा कि इन दोनों ने अपनी विद्या का प्रदर्शन किया है, मैं भी करूंगा। ये बोलकर उसने मंत्र बोलना शुरू कर दिए। चौथा ब्राह्मण दौड़कर एक पेड़ पर चढ़ गया। कुछ ही देर में शेर के शरीर में प्राण आ गए। अब शेर को भूख लग रही थी तो उसने तीनों दोस्तों को अपना भोजन बना लिया। चौथा दोस्त पेड़ पर चढ़ गया था, इस कारण बच गया।

कथा की सीख

इस कथा की सीख यह है कि कभी अपनी शिक्षा या ज्ञान का प्रदर्शन गलत जगह पर नहीं करना चाहिए। गलत जगह पर ज्ञान का उपयोग करेंगे तो हमारे लिए परेशानियां बढ़ जाएंगी।

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