सीख; संत ने महिला को एक शीशी देते हुए कहा कि इस दवा को पीने से तुम क्रोध को काबू कर सकोगी, जब तुम्हें क्रोध आए तो इसे मुंह से लगाकर पीना और तब तक पीती रहना, जब तक कि क्रोध शांत न हो जाए, एक हफ्ते……
एक प्रचलित लोक कथा के अनुसार पुराने समय में शांति नाम की एक महिला थी, लेकिन वह क्रोधी स्वभाव की थी। गुस्से में वह छोटा-बड़ा कुछ भी नहीं देखती थी और जो मुंह में आता, बोल देती। उसके परिवार वाले और गांव के लोग उससे परेशान थे। क्रोध शांत होने पर महिला को अपने किए पर बहुत पछतावा होता था।
> एक दिन वह नगर के प्रसिद्ध संत के पास गई। संत से शांति ने कहा कि गुरुजी मेरी क्रोध करने की आदत ने मुझे सभी से दूर कर दिया है। मैं खुद को सुधार नहीं पा रही हूं। आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरा क्रोध शांत हो जाए।
> संत ने उसे एक शीशी देते हुए कहा कि इस दवा को पीने से तुम क्रोध को काबू कर सकोगी। जब तुम्हें क्रोध आए तो इसे मुंह से लगाकर पीना और तब तक पीती रहना, जब तक कि क्रोध शांत न हो जाए। एक हफ्ते में तुम ठीक हो जाओगी। शांति ने क्रोध आने पर उस दवा को पीना शुरू कर दिया। एक सप्ताह में ही उसका क्रोध कम होने लगा था। खुश होकर वह संत से मिलने पहुंची।
> महिला ने संत से कहा कि गुरुदेव आपकी दवा ने चमत्कारी रूप से मेरा क्रोध कम कर दिया है। कृपया इस दवा का नाम बताएं।
> संत ने शांति से कहा कि उस शीशी में कोई दवा नहीं थी, सामान्य पानी था। क्रोध के समय तुम्हारी बोली को बंद करना था, तुम्हें मौन रखना था, इसीलिए मैंने तुम्हें ये शीशी दी थी। शीशी मुंह पर लगी होने की वजह से तुम क्रोध के समय बोल नहीं पाई, इससे सामने वाले लोग तुम्हारे कटु वचनों से बच गए। तुम चुप रही तो सामने वालों ने भी पलटकर कोई जवाब नहीं दिया। जब हम किसी के क्रोध का जवाब मौन से देते हैं तो बात वहीं खत्म हो जाती है।
कथा की सीख
> इस कथा की सीख यह है क्रोध को काबू करने का सबसे अच्छा और कारगर उपाय है मौन। क्रोध आने पर अगर हम मौन रहेंगे तो हम कटु वचन बोलने से बच सकते हैं। क्रोध को काबू करने के लिए हर रोज कुछ देर के लिए मेडिटेशन भी करना चाहिए।