भोलेनाथ का एक ऐसा रहस्‍यमयी मंदिर जिसे कहते हैं शापित, कुछ इस तरह हुआ है इस मंद‍िर का न‍िर्माण क‍ि यहां सूर्य की पहली क‍िरण सीधे…….

भोलेनाथ के कई ऐसे मंदिर हैं जहां के रहस्‍यों की गुत्‍थी आज तक कोई सुलझा नहीं पाया है। कहीं उनके मंदिर से परम प्रिय गण नंदी बाबा गायब हैं तो कहीं ऊंची गर्म पहाड़‍ियों पर भी बर्फ सी ठंडक मालूम पड़ती है। जी हां भोले बाबा के रहस्‍यमयी मंदिरों का ज‍िक्र यहीं खत्‍म नहीं होता। इनकी लंबी ल‍िस्‍ट है। इन्‍हीं में से एक मंदिर का ज‍िक्र हम यहां कर रहे हैं। कहते हैं ये शाप‍ित है इसलिए अधूरा रह गया। यही नहीं इस मंद‍िर का न‍िर्माण कुछ इस तरह हुआ है क‍ि यहां सूर्य की पहली क‍िरण सीधे गर्भगृह को छूती है। तो आइए जानते हैं क‍ि ये अधूरा मंदिर कहां है और क्‍या है इस मंदिर का पूरा रहस्‍य?

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हम ज‍िस रहस्‍यमयी श‍िव मंदिर की बात कर रहे हैं, उसका नाम है सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर। भोलेबाबा का यह मंदिर मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के भैंसदेही में पूर्णा नदी के तट पर स्थित है। प्राप्‍त जानकारी के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में शुरू हुआ था।

सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर ज‍िस स्‍थान पर है यानी क‍ि भैंसदेही में, पूर्व में उसे रघुवंशी राजा गय की राजधानी महिष्मति नाम से जाना जाता था। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा गय श‍िव जी के अनन्‍य भक्‍त थे। एक बार उन्‍होंने सोचा क‍ि क्‍यों न अपनी राजधानी में एक श‍िव मंदिर का न‍िर्माण करवाया जाए। तब उन्‍होंने मंदिर न‍िर्माण के ल‍िए कारीगरों को बुलाया।

कथा के अनुसार इस श‍िव मंदिर को तैयार करवाने के ल‍िए राजा गय ने उस समय के प्रस‍िद्ध वास्तुशिल्पी भाईयों नागर और भोगर को बुलवाया। राजा गय ने उन्‍हें आदेश द‍िया क‍ि महिष्मति में शानदार शिव मंदिर का निर्माण करें। बता दें क‍ि नागर और भोगर भाइयों के बारे में एक बात प्रचल‍ित थी। इसलिए जो भी उनसे न‍िर्माण करवाता उनकी उस बात को जरूर ध्‍यान रखता।

नागर-भोगर के बारे में यह बात प्रचल‍ित थी क‍ि वह हर निर्माण कार्य केवल नग्न अवस्था में ही करते थे। यही नहीं वे केवल एक ही रात में बड़े से बड़ा मंदिर बना डालते थे। हालांकि इस हुनर के साथ ही उन्‍हें एक शाप भी म‍िला हुआ था क‍ि अगर उन्हें नग्न अवस्था में मंदिर बनाते हुए कोई देख लेगा तो वे दोनों पत्थर के बन जाएंगे।

नागर-भोगर हमेशा की तरह नग्न अवस्था में ही मंदिर का न‍िर्माण कर रहे थे। रात कभी हो चुकी थी और दोनों ही भोजन करने के ल‍िए घर नहीं पहुंचे थे। इसके चलते उनकी बहन भोजन लेकर न‍िर्माण स्‍थल पर पहुंची। तभी उसने अपने भाइयों को नग्‍न अवस्‍था में देख ल‍िया। इसके बाद नागर-भोगर पत्‍थर के हो गए। इस तरह मंदिर न‍िर्माण का कार्य अधूरा ही रह गया और मंदिर का गुंबद नहीं बन सका।

मंदिर का न‍िर्माण कुछ इस तरह क‍िया गया है क‍ि यहां पर सूर्य की पहली क‍िरण सीधे गर्भगृह को छूती है। मान्‍यता है क‍ि सूर्य यहां प्रणाम करते हैं। इसके अलावा पूर्णिमा के चांद की भी पहली क‍िरण मंदिर के गर्भगृह को छूती है। इसके अलावा गर्भगृह में स्‍थाप‍ित नंदी बाबा की प्रत‍िमा को अगर क‍िसी वस्‍तु से तेज से छू ल‍िया जाए तो उससे घंटी की आवाज सुनाई देती है। बता दें क‍ि मंदिर के गर्भगृह में स्‍थाप‍ित श‍िवल‍िंग को पौराणिक अभिलेखों में उपज्‍योर्तिलिंग माना गया है।

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