जंबुकेश्वर मंदिर को लेकर मान्यता है कि इसकी दीवारें बनवाने के लिए भोलेनाथ स्वयं ही आते थे, एक बार माता पार्वती ने शिव ज्ञान की प्राप्ति के लिए…….
भोलेनाथ का व्यवहार जितना सादा है उतना ही मुश्किल है उनके रहस्यों को समझ पाना। इसी श्रृंखला में शिवजी के रहस्यमयी मंदिरों की भी लंबी फेहरिस्त है। ऐसे ही एक शिवमंदिर का हम यहां जिक्र कर रहे हैं। जो कि दक्षिण भारत में है। यह अत्यंत ही प्राचीन शिव मंदिर है। लेकिन बता दें कि इस मंदिर में शादी-विवाह का आयोजन नहीं किया जाता है। तो आइए जानते हैं क्या है ये सारा रहस्य?
दक्षिण भारत के तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में स्थापित शिव मंदिर का नाम ‘जंबुकेश्वर मंदिर’ है। इसके बारे में कहानी मिलती है कि इस मंदिर की दीवारें बनवाने के लिए भोलेनाथ स्वयं ही आते थे। मंदिर को लेकर यह भी कथा मिलती है कि एक बार माता पार्वती ने शिव ज्ञान की प्राप्ति के लिए पृथ्वी पर आकर इसी स्थान पर अपने हाथ से शिवलिंग बनाकर तपस्या की थी। तकरीबन 1800 वर्ष पहले हिंदू चोल राजवंश के राजा कोकेंगानन ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण करवाया।
जंबुकेश्वर मंदिर तमिलनाडु के पांच सबसे प्रमुख शिव मंदिरों में शामिल है। ये पांच मंदिर पंच महा तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें जंबुकेश्वर पानी का प्रतिनिधित्व करता है। जंबुकेश्वर में भूमिगत जल धारा है। इसकी वजह से यहां पानी की कभी कमी नहीं पड़ती। बता दें कि जंबुकेश्वर मंदिर की वास्तुकला भी कमाल की है। इस मंदिर के अंदर पांच प्रांगण हैं। मंदिर के पांचवे परिसर की सुरक्षा के लिए विशाल दीवारों का निर्माण किया गया है। इसे विबुडी प्रकाश के नाम से जानते हैं।
जंबुकेश्वर मंदिर को लेकर एक और कहानी मिलती है। कथा के अनुसार एक बार देवी पार्वती ने दुनिया के सुधार के लिए की गई शिवजी की तपस्या का मज़ाक उड़ाया। शिव, पार्वती के इस कृत की निंदा करना चाहते थे, उन्होंने पार्वती को कैलाश से पृथ्वी पर जाकर तपस्या करने का निर्देश दिया। भगवान शिव की निर्देशानुसार अक्विलादेश्वरी के रूप में देवी पार्वती पृथ्वी पर जंबू वन तपस्या के लिए पहुंची। देवी ने कावेरी नदी के पास वेन नवल पेड़ के नीचे शिवलिंग बनाया और शिव पूजा में लीन हो गईं। बाद में लिंग अप्पुलिंगम के रूप में जाना गया। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिवजी ने अक्विलादेश्वरी को दर्शन दिए और शिव ज्ञान की प्राप्ति कराई।
जंबुकेश्वर मंदिर में मूर्तियों को एक-दूसरे के विपरीत स्थापित किया गया है। जिन मंदिरों में ऐसी व्यवस्था होती है उन्हें उपदेशा स्थालम कहा जाता है। क्योंकि इस मंदिर में देवी पार्वती एक शिष्य और जंबुकेश्वर एक गुरु के रूप में मौजूद हैं। इसलिए इस मंदिर में थिरु कल्याणम यानी कि शादी-ब्याह नहीं कराया जाता है।