भारत के इस मंदिर को कहा जाता है रहस्‍यमयी, कहते हैं कि रातों रात इसने खुद ही बदल दी थी अपनी दिशा, जानिए

भारत में रहस्‍यमयी मंदिरों का खजाना भरा पड़ा है। हालांकि इनके इन रहस्‍यों से पर्दा उठाने के लिए पुरातत्‍व विज्ञानियों ने कई बार कोशिश की लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगी। फिर बात चाहे बक्‍सर में बात करती हुई मूर्तियों के मंदिर की हो या फिर उड़ीसा में गर्म तापमान के बीच भी एसी जैसे वातावरण वाले शिव मंदिर की हो। इनके रहस्‍य आज भी रहस्‍य ही हैं। ऐसा ही एक और रहस्‍यमयी मंदिर है बिहार के औरंगाबाद जिले में। इसकी महिमा अद्भुत है। इस मंदिर के बारे में बारे में कहा जाता है कि इसने खुद ही अपनी दिशा बदल दी थी। आइए इस बारे में विस्‍तार से जानते हैं।

एम

औरंगाबाद जिले में एक देव नाम का स्‍थान है। यह रहस्‍यमयी मंदिर भी इसी स्‍थान पर स्‍थापित है। यह सूर्य देवता का मंदिर है और देव नामक जगह पर है तो इसलिए इसे देव सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण छठीं या आठवीं सदी के बीच हुआ होगा। मंदिर की नक्‍काशी बेजोड़ है। यही वजह है कि स्‍थानीय निवासी इस मंदिर को त्रेता और द्वापर युग के बीच का मंदिर बताते हैं।

कथा मिलती है कि एक बार औरंगजेब मंदिरों को तोड़ता हुआ औरंगाबाद के देव पहुंचा। वह मंदिर पर आक्रमण करने ही वाला था कि वहां के पुजारियों ने उससे काफी अनुरोध किया कि वह मंदिर को न तोड़े। कहते हैं कि पहले तो औरंगजेब किसी भी कीमत पर राजी नहीं हुआ लेकिन बार-बार लोगों के अनुरोध को सुनकर उसने कहा कि यदि सच में तुम्‍हारे भगवान हैं और इनमें कोई शक्ति है तो मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा में हो जाए। यदि ऐसा हो गया तो मैं मदिर नहीं तोड़ूंगा।

स्‍थानीय निवासी बताते हैं कि औरंगजेब पुजारियों को मंदिर के प्रवेश द्वार की दिशा बदलने की बात कहकर अगली सुबह तक का वक्‍त देकर वहां से चला गया। लेकिन इसके बाद पुजारीजन काफी परेशान हुए और वह रातभर सूर्य देव से प्रार्थना करते रहे कि वह उनके वचन की लाज रख लें। कहते हैं कि इसके बाद जब पुजारीजन अगली सुबह पूजा के लिए मंदिर पहुंचे तो उन्‍होंने देखा कि मंदिर का प्रवेश द्वार तो दूसरी दिशा में हो गया है। तब से देव सूर्य मंदिर का मुख्‍य द्वार पश्चिम दिशा में ही है।

देव सूर्य मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां सदियों से भक्‍त जन आते हैं और मन मांगी मुराद पाकर ही जाते हैं। यहां मन्‍नत पूरी होने के बाद भक्‍त सूर्य देव को अर्घ्‍य देने आते हैं। स्‍थानीय निवासी बताते हैं कि भारत के कोने-कोने से लोग यहां प्रभाकर देव की आराधना करते हैं और मुरादों को झोली भरकर ले जाते हैं।

कहा जाता है कि सतयुग में इक्ष्‍वाकु के पुत्र राजा ऐल जो कि कुष्‍ठ रोग से पीड़‍ित थे वह शिकार खेलने गए थे। तभी उन्‍हें भयंकर प्‍यास और गर्मी लगी। तब राजा ऐल ने अपनी प्‍यास बुझाने के लिए देव स्थित तालाब का जल पीकर उसमें स्‍नान किया। मान्‍यता है कि स्‍नान के बाद उनका कुष्‍ठ रोग पूर्ण रूप से ठीक हो गया। राजा खुद भी इससे काफी हैरान हुए। लेकिन उसी रात राजा को स्‍वप्‍न में श्री सूर्य देव के दर्शन हुए कि वह उसी तालाब में हैं जहां से उनका कुष्‍ठ रोग ठीक हुआ है। इसके बाद राजा ने उसी स्‍थान पर सूर्य मंदिर का निर्माण करवा दिया। कहते हैं कि उस तालाब से ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश की भी मूर्तियां मिली, जिन्‍हें राजा ने मंदिर में स्‍थापित करवा दिया।

देव सूर्य मंदिर की महिमा इतनी भारी है कि यहां पर देव सूर्य महोत्‍सव का भी आयोजन किया जाता है। हालांकि पहले तो यह छोटे स्‍तर पर ही होता था लेकिन बाद में साल 1998 में यह वृहद स्‍तर पर आयोजित होने लगा। यहां बसंत पंचमी के दूसरे दिन यानी कि सप्‍तमी के दिन पूरे शहर के लोग नमक का त्‍याग करते हैं और सूर्य देव महोत्‍सव मनाते हैं। इसके अलावा सूर्य देव की विशेष पूजा का भी आयोजन होता है। इसमें शामिल होने के लिए देश के कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं।

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *