किसी गांव में एक संत अपनी पत्नी के साथ रहते थे, उनके पास थोड़ी जमीन थी, वहां खेती करके अपना जीवन यापन कर रहे थे, कड़ी मेहनत के बाद भी उनके जीवन में गरीबी बनी हुई थी, परेशानियां……
एक संत अपनी पत्नी के साथ गांव में रहते थे। संत के पास सिर्फ थोड़ी जमीन थी और वह खेती करके अपना जीवन गुजार रहे थे। वह काफी मेहनत करते थे। लेकिन गरीबी खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी और परेशानियां दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी। कभी-कभी तो ऐसा दिन आ जाता था कि संत एवं उनकी पत्नी को भूखा ही सोना पड़ता था। इलाके के सभी लोग संत का सम्मान करते थे। हालांकि संत स्वाभिमानी थे। वे कभी भी किसी से सहायता नहीं लेते थे। जब भी कोई उनसे मिलने आता था तो संत उसको उसकी परेशानी का समाधान बताते थे।
जब इलाके के राजा को इस बात का पता चला तो राजा ने संत की मदद करने की सोची। राजा ने कहा कि जाओ और संत के घर पर स्वर्ण मुद्राएं और अनाज पहुंचा दो। मंत्री ने राजा की आज्ञा मानी और वह अपने सैनिकों को लेकर संत के घर पहुंच गया। संत की पत्नी ने खूब सारे सोने के सिक्के देखें तो वह सोचने लगे कि अब हमारे बुरे दिन दूर हो जाएंगे और सब कुछ ठीक हो जाएगा।
कुछ समय बाद संत घर पर आए और उनको पता चला कि राजा ने सहायता की है। संत ने वह सभी चीजें उठाई और महल में आ गए। संत ने कहा कि मैं राजा को नहीं जानता और ना ही वह मुझे व्यक्तिगत रूप से पहचानते हैं। उन्होंने लोगों की सुनी बातों पर विश्वास किया और मेरी सहायता की। मुझे राजा का यह दान नहीं चाहिए। खुद के कमाए हुए धन से जो सुख मिलता है वह दूसरों के धन से कभी नहीं मिल सकता। संत के स्वाभिमान की राजा ने जमकर प्रशंसा की और संत को अपने दरबार में पुरोहित के पद पर नियुक्त किया।
कहानी की सीख
कहानी से सीखने को मिलता है कि हमेशा खुद के ही धन से जीवन यापन करना चाहिए। दूसरों के धन से हमें कभी भी सुख नहीं मिल सकता।