शिव जी को पति रूप में पाने के लिए माता पार्वती तप कर रही थीं, उन्हें तप करते हुए कई वर्ष हो गए थे, एक दिन माता को प्यास लगी तो वे…….

देवी दुर्गा पार्वती जी का एक रूप है। पार्वती जी से जुड़ी एक कथा है, जिसमें उन्होंने खुद से ज्यादा दूसरों की भलाई करने की सीख दी है।

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उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया है कि माता पार्वती शिव जी को पति रूप में पाने के लिए तप कर रही थीं। देवी को तप करते हुए कई वर्ष बीत गए थे।

एक दिन देवी को प्यास लगी तो वे पानी पीने के लिए पास के तालाब की ओर गईं। तालाब पर देवी ने देखा कि एक मगरमच्छ ने छोटे से बच्चे का पैर पकड़ रखा है।

बच्चा दर्द की वजह से जोर-जोर से चिल्ला रहा था। मगरमच्छ उस बच्चे से अपनी भूख मिटाना चाहता था। बच्चा की दशा देखकर देवी को उस पर दया आ गई।

देवी मां मगरमच्छ से कहा कि आप इस बच्चे को छोड़ दें।

मगरमच्छ ने कहा कि माता अगर मैं इसे छोड़ दूंगा तो मैं भूखा मर जाऊंगा। मेरा तो आहार यही है।

देवी ने एक बार फिर उस मगरमच्छ से निवेदन किया तो उसने कहा कि मैं इसे छोड़ देता हूं, लेकिन आपको मुझे अपनी तपस्या का पूरा फल देना होगा।

माता पार्वती ने बिना विचार किए अपनी वर्षों की तपस्या का फल उस मगरमच्छ को दे दिया। तप का फल मिलते ही मगरमच्छ ने उस बच्चे को छोड़ दिया। मगरमच्छ को मुक्ति मिल गई और दिव्य शरीर धारण करके वह स्वर्ग चला गया।

बच्चे की जान बचाकर देवी मां प्रसन्न थीं, लेकिन अब उन्हें फिर से तप करना था। देवी मां तपस्या करने के लिए तैयारी करने लगीं, तभी वहां शिव जी प्रकट हुए और देवी के तपदान से प्रसन्न हो गए और देवी की मनोकामना पूरी करने का वरदान दिया।

देवी पार्वती की सीख

इस किस्से में देवी ने यह सीख दी है कि हमें अपनी भलाई से ज्यादा दूसरों की भलाई के बारे में विचार करना चाहिए। ऐसे काम करें, जिनसे दूसरों का लाभ मिलता है। तभी भगवान की कृपा मिलती है और जीवन में सुख-शांति आती है।

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