जब समुद्र मंथन से विष प्राप्त हुआ तो देवताओं और असुरों में हाहाकार मच गया कि कौन विष ग्रहण करेगा? उस समय भगवान शिव ने…..

हिंदू धर्म में सावन का महीना देवों के देव महादेव को समर्पित होता है। इस महीने में भगवान शिव और माता पार्वती की श्रद्धा भाव से पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही शिव जी के निमित्त सोमवार का व्रत भी रखा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण हो जाती हैं।

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भोलेनाथ बड़े ही दयालु हैं। महज फल, फूल, जल, भांग, धतूरा और बेल पत्र अर्पित करने से प्रसन्न हो जाते हैं। अतः साधक सावन के महीने में विधि पूर्वक भगवान शिव की पूजा करते हैं। भगवान शिव के गले में वासुकी नाग, सिर पर चंद्रमा, जटाओं में गंगा, हाथ में त्रिशूल और डमरू, देह में विभूति और गले में सांप धारण किए हैं। आइए, भगवान शिव द्वारा सिर पर चंद्रमा धारण करने की कथा जानते हैं-

कथा

सनातन धर्म शास्त्रों में निहित है कि चिरकाल में असुरों के आतंक से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। स्वर्ग नरेश इंद्र भी भयभीत हो उठे। उस समय देवी-देवता और ऋषि-मुनि सभी जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास पहुंचें। उन्हें स्थिति से अवगत कराया। तब भगवान विष्णु ने उन्हें असुरों की मदद से समुद्र मंथन कर अमृत प्राप्त करने की सलाह दी। साथ ही भगवान विष्णु ने कहा- समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत का पान करने से आप सभी देवता अमर हो जाएंगे, लेकिन असुर अमृत पान न करें। अगर कोई असुर अमृत पान कर लेता है, तो वह अमर हो जाएगा। उस समय देवताओं और असुरों ने वासुकी नाग और मंदार पर्वत की सहायता से समुद्र मंथन किया। समुद्र मंथन से 14 रत्न, विष और अमृत प्राप्त हुए। इनमें सबसे पहले विष प्राप्त हुआ था।

जब समुद्र मंथन से विष प्राप्त हुआ,तो देवताओं और असुरों में हाहाकार मच गया कि कौन विष ग्रहण करेगा? उस समय भगवान शिव ने तीनों लोकों की रक्षा हेतु विषपान किया। विष पान के चलते भगवान शिव के गले में जलन होने लगा। उनका शरीर तपने लगा। यह देख देवी-देवता व्याकुल हो उठे। तब देवताओं ने भगवान शिव को अपने शीश पर चंद्रमा धारण करने की सलाह दी। चंद्रमा शीतलता प्रदान करता है। अतः भगवान शिव ने अपने शीश पर चंद्रमा को धारण किया।

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