ऋषि, मुनि, साधु और संतों में क्या अंतर है, क्या आपको है इस बारे में कोई जानकारी, यहां जानिए सबकुछ
हिंदू धर्म में साधु-संत, गुरु-शिष्य, महात्मा इत्यादि की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। प्राचीन काल से चली आ रही इस परंपरा ने समाज के कल्याण के लिए मार्गदर्शन किया है। भारत में कई महान साधु-संतों का जन्म हुआ जिन्होंने विभिन्न प्रकार के धार्मिक ग्रंथ और कृतियों की रचना कर, मनुष्य को सद्मार्ग दिखाया। लेकिन वर्तमान समय में साधु, संत, ऋषि एवं मुनियों का नाम एक दूसरे के पर्याय के रूप में प्रयोग किया जाता है। जो गलत है, बल्कि इन सभी में बहुत भिन्नताएं हैं। आज हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे और जानेंगे क्या है साधु, संत, ऋषि, मुनि में अंतर?
संत
संत की उपाधि उन्हें दी जाती है, जिनका आचरण सत्य होता है। प्राचीन काल में कई आत्मज्ञानी व सत्यवादी लोग थे, जिन्हें संत कहा जाता था। जैसे संत कबीरदास, संत तुलसीदास, संत रविदास इत्यादि। इन्होंने संसार और आध्यात्म के बीच संतुलन बना कर रखा था। साथ अपनी रचनाओं से सही और गलत का पाठ पढ़ाया था।
साधु
साधु उन्हें कहा जाता है जो अधिक समय साधना में लीन रहते हैं। साधु बनने के लिए वेदों का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक नहीं है। साधना से ही जो ज्ञान प्राप्त करते हैं, वह साधु कहलाते हैं। साथ ही शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि जो व्यक्ति काम, क्रोध, लोभ मोह इत्यादी से दूर रहता है, उन्हें भी साधु ही कहा जाता है।
ऋषि
ऋषि उन ज्ञानियों को संज्ञा दी जाती है, जिन्होंने वैदिक रचनाओं का निर्माण किया था। उन्हें कठोर तपस्या के बाद यह उपाधि प्राप्त होती है। ऋषि वह कहलाते हैं जो क्रोध, लोभ, मोह, माया, अहंकार, इर्ष्या इत्यादि से कोसों दूर रहते हैं।
मुनि
मुनि उन आध्यात्मिक ज्ञानियों को कहा जाता है जो अधिकांश समय मौन धारण करते हैं या बहुत कम बोलते हैं। लेकिन मुनियों को वेद एवं ग्रंथों का पूर्ण ज्ञान होता है। साथ ही वह मौन रहने की शपथ भी लेते हैं। जो ऋषि घोर तपस्या के बाद मौन धारण करने की शपथ लेते हैं, वह मुनि कहलाते हैं।
महर्षि
महर्षि उन महात्माओं को उपाधि दी जाती है, जिन्हें दिव्य चक्षु की प्राप्ति होती है। बता दें कि मनुष्य को तीन प्रकार के चक्षु प्राप्त होते हैं। एक ज्ञान चक्षु, दिव्य चक्षु और परम चक्षु। इसके साथ जिन्हें ज्ञान चक्षु की प्राप्ति होती है, उन्हें ऋषि कहा जाता है और जो परम चक्षु को जागृत कर लेते हैं, उन्हें ब्रह्मर्षि कहा जाता है। अंतिम महर्षि दयानंद सरस्वती हुए थे। उनके बाद किसी को भी महर्षि की उपाधि प्राप्त नहीं हुई।
कथावाचक
वर्तमान समय में कई लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि क्या कथावाचक भी ऋषि-मुनियों की श्रेणी में आते हैं। तो बता दें कि शास्त्रों में ऐसा कहीं भी वर्णन नहीं मिलता है। कथावाचक वह होते हैं जो भगवान की कथा लोगों तक सरल रूप से पहुंचाते हैं। ऐसे में इन्हें संत, महात्मा, ऋषि, एवं मुनि के श्रेणी में नहीं रखा जाता है।