पिता की बात मानकर भारद्वाज वेद पढ़ने लगे, भारद्वाज मुनि की संकल्प शक्ति और पढ़ाई की एकाग्रता देखकर देवराज इंद्र प्रसन्न हो गए और वे भारद्वाज के सामने……
पुराने समय में भारद्वाज मुनि थे। वे देवगुरु बृहस्पति के पुत्र थे। भारद्वाज बहुत सारा ज्ञान हासिल करना चाहते थे। उनकी सोच ये थी कि उन्हें संसार की सारी बातों का ज्ञान हो जाए। इसके लिए वे लगातार अध्ययन करते रहते थे।
एक दिन बृहस्पति ने अपने पुत्र भारद्वाज से कहा कि पूरे संसार का ज्ञान वेदों में है। अगर तुम वेद पढ़ लोगे तो समझ लो कि तुमने पूरा ज्ञान हासिल कर लिया है।
पिता की बात मानकर भारद्वाज वेद पढ़ने लगे। भारद्वाज मुनि की संकल्प शक्ति और पढ़ाई की एकाग्रता देखकर देवराज इंद्र प्रसन्न हो गए और वे भारद्वाज के सामने प्रकट हुए। इंद्र ने कहा कि मैं तुम्हारी लगन देखकर बहुत प्रसन्न हूं। तुम मुझसे कोई भी वर मांग सकते हो।
भारद्वाज ने इंद्र से कहा कि संसार में ज्ञान बहुत सारा है, लेकिन मेरी उम्र बहुत कम है। कृपया करके मेरी उम्र सौ साल बढ़ा दीजिए।
इंद्र ने भारद्वाज की उम्र सौ वर्ष और बढ़ा दी। भारद्वाज मुनि को ज्ञान हासिल करते-करते सौ वर्ष भी बीत गए। इसके बाद देवराज इंद्र ने उनकी उम्र सौ साल और बढ़ा दी। अगले सौ साल और बीत गए, लेकिन भारद्वाज को पूरा ज्ञान नहीं मिल सका।
जब अगले 100 भी बीत गए गए, तब इंद्र भारद्वाज के सामने प्रकट हुए और बोले कि भारद्वाज सामने तीन पहाड़ हैं। क्या हम इन पहाड़ों से एक मुट्ठी मिट्टी लेकर इन पहाड़ों की व्याख्या कर सकते हैं? ये संभव नहीं है। ठीक इसी तरह संसार का ज्ञान है। संसार का ज्ञान अथाह है। किसी एक व्यक्ति के लिए पूरा ज्ञान हासिल करना संभव नहीं है। इसलिए तुम्हें समय का सदुपयोग करना चाहिए और अपनी उम्र के अनुसार किसी एक ज्ञान को हासिल करना चाहिए और उसमें पारंगत होने की कोशिश करनी चाहिए। मुझे सब ज्ञान मिल जाएगा, ये जिद करना भी ज्ञान हासिल करने में बाधक होती है।
इंद्र की बातें भारद्वाज मुनि को समझ आ गईं और इसके बाद उन्होंने सूर्य देव की भक्ति की और अपने ज्ञान को व्यवस्थित किया। इसके बाद से उनका नाम विद्वान मुनियों में शामिल हो गया।
इस कहानी में देवराज इंद्र ने संदेश दिया है कि बहुत सारा काम एक साथ करने से बेहतर है कि हम किसी एक काम को ठीक से पूरा कर लें। किसी एक काम में एक्सपर्ट हो जाएंगे तो जीवन सफल हो जाएगा।