परमहंस जी ने जब ये सुना की विवेकानंद हिमलाय जा रहे हैं उन्होंने तुरंत उन्हें बुलावा भेज दिया, कुछ ही समय में विवेकानंद जी उनके गुरु के सामने खड़े थे……

योग्यता और अपनी शक्ति का उपयोग गलत जगह किया जाए तो किसी भी तरह का लाभ नहीं मिलता है, उल्टा हमारे ये गुण व्यर्थ साबित हो जाते हैं। अधिकतर लोग अपनी योग्यता का इस्तेमाल सिर्फ अपनी भलाई के लिए करते हैं। अपनी शक्तियों से सिर्फ अपना भला करना चाहते हैं, लेकिन ये सही नहीं है। अगर कोई व्यक्ति योग्य है, अगर शक्ति हमारे पास है तो उसका उपयोग समाज के लिए करना चाहिए। हमें अपनी योग्यता का इस्तेमाल सही जगह पर कैसे करना चाहिए, ये बात हम विवेकानंद जी और परमहंस जी के एक चर्चित किस्से से समझ सकते हैं।

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बात उस समय की है जब स्वामी विवेकानंद हिमालय जाने की योजना बना रहे थे। विवेकानंद जी चाहते थे कि वे हिमालय की किसी गुफा में बैठकर ध्यान करें, जिससे उनका आत्म कल्याण हो सके। ऐसा करने से उनकी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ सकती थी।

परमहंस जी को मालूम हुई विवेकानंद जी की इच्छा

विवेकानंद जी ने अपनी इच्छा बताते हुए सभी साथियों के सामने इस बात की घोषणा भी कर दी थी कि वे जल्दी ही हिमालय जले जाएंगे। स्वामी जी के गुरु रामकृष्ण परमहंस जी को उनके अन्य शिष्यों ने विवेकानंद जी इच्छा के बारे में बताया।

परमहंस जी ने ये बातें सुनीं तो तुरंत ही विवेकानंद जी को बुलावा भेज दिया। कुछ ही समय में विवेकानंद जी उनके गुरु के सामने खड़े थे। गुरु परमहंस जी ने पूछा कि मैं ये क्या सुन रहा हूं, तुम हिमालय जाना चाहते हो? तुम वहां आखिर जाना क्यों चाहते हो?

विवेकानंद जी ने कहा कि मैं अपने आध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ना चाहता हूं। मैं हिमालय जाकर तप और ध्यान करूंगा।

परमहंस जी ने समझाया समाज की भलाई करना ज्यादा जरूरी है

परमहंस जी उनकी बातें बहुत ध्यान से सुनीं और बोले कि तुम्हारी योग्यता ऐसी है कि तुम बहुत अच्छी तरह से तप और ध्यान कर सकते हो। इसमें कोई संदेह नहीं है। इससे तुम्हारा आध्यात्मिक कल्याण भी होगा। लेकिन क्या तुम ये बता सकते हो इस तपस्या से समाज को क्या लाभ मिलेगा?

परमहंस जी ने आगे कहा कि हमारे समाज में बहुत सारे ऐसे लोग हैं, जिन्हें हमारी मदद की जरूरत है। काफी लोग अनपढ़ हैं, गरीब हैं, अशांत हैं। तरह-तरह की समस्याओं से लोग जूझ रहे हैं। ऐसी स्थिति में तुम इन सबको छोड़कर सिर्फ अपने लिए ध्यान करना चाहते हो। ऐसा करने से तो न तो तुम्हें शांति मिलेगी और न ही भगवान इस तप को स्वीकार करेंगे।

विवेकानंद जी ने संकल्प लिया कि वे समाज कल्याण के लिए करेंगे काम

स्वामी विवेकानंद अपने गुरु की सारी बातें बहुत ध्यान से सुन रहे थे। गुरु जी ने आगे कहा कि अगर तुम अपनी योग्यता का सही उपयोग करना चाहते हो तो तुम्हें समाज कल्याण के लिए काम करना चाहिए। जरूरतमंद लोगों की मदद करोगे तो तुम्हें भगवान की प्रसन्नता भी मिलेगी और तुम्हारा मन भी शांत होगा। अकेले में बैठकर तप करने से कोई बड़ा लाभ नहीं मिल पाएगा।

अपने गुरु की ये बातें सुनकर विवेकानंद जी ने हिमालय जाने का विचार छोड़ दिया। उन्होंने गुरु के सामने संकल्प लिया कि अब से वे सिर्फ समाज कल्याण के लिए ही काम करेंगे।

इस किस्से से हम सीख सकते हैं कि हमें अपनी योग्यता और शक्तियों का उपयोग निजी स्वार्थ के लिए नहीं करना चाहिए। हमें समाज कल्याण के लिए अपनी योग्यता खर्च करनी चाहिए। तभी हमें शांति और प्रसन्नता मिल सकती है। अगर हम अपनी इच्छाएं पूरी करने में लगे रहेंगे तो हमारी योग्यता और शक्तियां समाज के लिए काम नहीं आ पाएंगी।

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