दारूका नामक राक्षसी पति दारुक के साथ वन में रहती थी, दारूका मां पार्वती की अनन्य भक्त थी, उसने पार्वती जी से आशीर्वाद प्राप्त किया था कि वह वन को लेकर कहीं भी…….
भगवान शिव स्वयं महाकाल हैं। भगवान शिव की अराधना से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। भगवान शिव पृथ्वी पर ज्योतिर्लिंग स्वरूप में विद्यमान हैं। देश भर में लाखों शिवलिंग हैं परंतु देश में अलग-अलग 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जिनका बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति प्रतिदिन इन 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम जपता है, उसको सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। उन्हीं में से एक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है, जो गुजरात के बड़ौदा क्षेत्र में गोमती द्वारकाधाम के समीप है। शिव का एक नाम नागेश्वर यानि नागों के ईश्वर। आज हम नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा का विस्तार से वर्णन करेंगे।
बहुत समय पहले की बात है दारूका नामक राक्षसी पति दारुक के साथ वन में रहती थी। दारूका मां पार्वती की अनन्य भक्त थी। उसने पार्वती जी से आशीर्वाद प्राप्त किया था कि वह वन को लेकर कहीं भी जा सकती थी। राक्षसी प्रवृत्ति होने के कारण पति और पत्नी ने वन में उत्पात मचा रखा था। इससे परेशान होकर सभी साधु-संत महर्षि और्व की शरण में गए। समस्या जानकर महर्षि और्व ने राक्षसों को यह श्राप दिया, जिसके अनुसार अगर राक्षस मानव जाति को पृथ्वी पर कष्ट पहुंचाते हैं और यज्ञ को रोकते हैं, तो स्वयं ही नष्ट हो जाएंगे।
जब देवताओं को इस बात का पता चला तो उन्होंने राक्षसों पर आक्रमण कर दिया। सभी राक्षस मुश्किल हालात में पड़ गए क्योंकि अगर वह पृथ्वी पर युद्ध करते हैं तो वह स्वयं ही नष्ट हो जाएंगे। दूसरी तरफ युद्ध न करने की स्थिति में परास्त होकर भी मौत को प्राप्त हो जाएंगे। इस स्थिति से निपटने के लिए दारूका ने वरदान का इस्तेमाल करते हुए वन को उड़ाकर समुद्र में ले गई। इसके बाद राक्षस समुद्र में निडर होकर रहने लगे। एक बार मनुष्यों से भरे जहाज को राक्षसों ने बंदी बना लिया।
इसी जहाज पर सुप्रिय नाम के एक शिव भक्त भी थे। सभी को कारागार में डाल दिया था। सुप्रिय कारागार में रहकर भी शिव का पूजन करते थे। जब दारुक राक्षस को इस बात का पता चला तो, उसने सुप्रिय को मारना चाहा। उन्होंने भगवान शिव का आह्वान किया। भक्त की पुकार को सुनकर भगवान शिव वहां पर प्रकट हो गए। उन्होंने दारूक समेत सभी राक्षसों को नष्ट कर दिया। जिसके बाद भगवान शिव ने वरदान दिया कि सभी लोग अपने धर्म का पालन कर सकते हैं और किसी राक्षस का यहां पर कोई स्थान नहीं है।
शिव जी के वचन सुनकर दारूका डरकर माता पार्वती की तपस्या की। मां के प्रसन्न होने पर यह वर मांगा कि मेरे वंश की रक्षा कीजिए। मां पार्वती ने उसे आश्वासन देते हुए भगवान शिव से कहा कि आपका वचन सर्वदा सत्य है परंतु ये राक्षस पत्नियां जिन पुत्रों को जन्म देंगी, वे सब इस वन में रह सकते हैं। माता के इस वचन को सुनकर भगवान भोलेनाथ ने कहा तथास्तु। लेकिन मैं अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए लिंग रूप में इसी वन में रहूंगा। इस प्रकार नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई। यहाँ भगवान शिव स्वयं नागेश्वर तथा देवी पार्वती नागेश्वरी के रूप में विराजमान हैं।