खेत में काट रहे थे पेड़, लेकिन आ रही थी अजीब आवाज़,ध्यान से देखा तो निकली ऐसी चीज़ जिसे देख उड़ गए सबके होश…

एमपी के सागर में पेड़ की खुदाई की जा रही थी, लेकिन तभी खुदाई ऐसी चीज निकली की सभी लोग हैरान रह गए और चौंक उठे. किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था.

सागर जिले के जालंधर में बरगद पेड़ में खुदाई करने से शिवलिंग मिला है, इसके बाद दर्शनों के लिए जनता का भारी हुजूम उमड़ रहा है, कई गांव के लोग उस स्थान तक पहुंच रहे हैं, और चमत्कार मानकर भोलेनाथ का जयकारा लगा रहे, लेकिन खुदाई में मिले छोटे बड़े 8 शिवलिंग को लेकर पुरातत्व वेदताओं के द्वारा चौंकाने वाला खुलासा किया गया है, उनका मानना है कि यह 11वीं शताब्दी में परमार कालीन राजाओं के द्वारा निर्मित कराई गई शिवलिंग है, जो शेव धर्म को मानने वाले थे, अगर शिवलिंग मिला है, तो इसके आसपास कहीं मंदिर भी होगा जो जमीन में भूमिगत हो गया है. अगर इस इलाके में सर्वेक्षण और उत्खनन का कार्य किया जाए, तो परमार कालीन मंदिर के अवशेष और शिवलिंग मिल सकते हैं. इसलिए जिला प्रशासन और जिला पुरातत्व विभाग ऐसा कराए तो इसके साक्ष्य मिल सकते हैं.

दरअसल, एक महीने पहले सागर मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर जलवा खेड़ा के जालंधर गांव में सैकड़ो साल पुराने बरगद का पेड़ बीच में से दो फाड़ होकर टूट गया था. जो एक किसान के खेत में है, तीन दिन पहले एक युवक को स्वप्न में एहसास हुआ कि पेड़ की जड़ों में कुछ है उसने खुदाई की तो यह शिवलिंग निकले हैं.

1100 साल पुराना है खुदाई में निकला शिवलिंगसागर के डॉक्टर हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय में पुरातत्व विभाग के विभाग अध्यक्ष डॉक्टर नागेश दुबे इसको लेकर कहते हैं कि इसमें जो प्रमुख शिवलिंग है वह पूर्व मध्यकाल का लगता है. जो 11वीं 12वीं शताब्दी का रहा होगा. निश्चित रूप से यह क्षेत्र परमारो का क्षेत्र रहा है. परमार राजवंश का इस भूभाग पर शासन रहा है, यहां पर परमार कालीन अन्य मंदिर भी प्राप्त हुए हैं. राहतगढ़ में परमार कालीन अभिलेख मिला है जो राहतगढ़ के पास शिव मंदिर है वह भी परमार कालीन माना जाता है. जरुआ खेड़ा क्षेत्र भी अनुमानतः परमार के अधीन ही रहा होगा, उस समय यह शिवलिंग निर्मित हुआ होगा. क्योंकि परमार जो शासक थे वह शेव धर्म को मानने वाले थे. उन्होंने अनेक शेव धर्म मंदिरों का निर्माण किया है.

प्रोफेसर दुबे आगे कहते हैं कि जैसा कि हम जानते हैं कि उस समय विशाल शिवलिंग भी निर्माण होते थे और जो शिवलिंग दिख रहे हैं वह भी काफी बड़ा है परमार कालीन सबसे बड़ा जो मंदिर है वह भोजपुरी का है लेकिन उस काल का यहां पर उदयपुर में भी मंदिर है विदिशा के पास वह भी परमार कालीन मंदिर है. यह जो शिवलिंग मिला है और उसके साथ में जो अवशेष मुझे दिख रहे हैं इसमें सती पिलर का एक टूटा हुआ अवशेष भी दिखाई दे रहा है. जो पूर्व मध्यकाल में सती पिलर बहुत मिलते हैं यह भी इस पीरियड का रहा होगा, अन्य शिवलिंग उसके बाद के भी रखे हो सकते हैं, लेकिन जो प्रमुख शिवलिंग है वह निश्चित रूप से पूर्व मध्यकाल का रहा होगा.

परमार कालीन मंदिर जमीन में दवा होगाअगर इस क्षेत्र में सर्वेक्षण और उत्खनन का कार्य किया जाए तो मुझे लगता है कि यहां पर परमार कालीन मंदिरों के अवशेष यहां पर होंगे, यह शिवलिंग दर्शाता है कि निश्चित रूप से यह जिस मंदिर में यह शिवलिंग रहा होगा, वह भूमिगत हो गया होगा, वह भी इसी क्षेत्र में भूमिगत हो गया है, यदि उसको लेकर सर्वेक्षण और उत्खनन का कार्य किया जाए तो निश्चित रूप से और भी अन्य परमार कालीन शिवलिंग मिलेंगे, इससे यह सिद्ध होता है कि इस भूभाग में परमार कालीन मंदिर होंगे.

जिला पुरातत्व विभाग आगे सर्वेक्षण करेंपरमारो के द्वारा जो शिव और शैव मद का विकास किया गया है हालांकि वह है सहिष्णु धर्म को मानने वाले थे सहिष्णुता पूर्ण व्यवहार करते थे अंध धर्म का भी उन्होंने सम्मान किया है लेकिन मूलतः शेव धर्म को मानने वाले थे, जिसका यह एक पुरातत्व प्रमाण मिला है जिला पुरातत्व विभाग या जिला प्रशासन इसमें और आगे कार्रवाई करें तो इसमें और अन्य साक्ष्य मिल सकती है.

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