एक वृद्ध राजा के कोई संतान नहीं थी, राजा के गुरु ने कहा कि तुम किसी योग्य व्यक्ति को अपना पुत्र बना लो, काफी खोज करने के बाद राजा ने एक भिखारी को अपना उत्तराधिकारी बना लिया……
किसी नगर में एक राजा रहता था, जो बहुत बूढ़ा हो चुका था। लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। अब राजा को यही चिंता सताने लगी कि उसकी मृत्यु के बाद इस राज्य और प्रजा को कौन संभालेगा। राजा ने ये चिंता अपने गुरु को बताई तो गुरु ने कहा कि राजन आप किसी योग्य व्यक्ति को अपना पुत्र बना लें। राजा गुरु की इस बात को समझ गया और योग्य व्यक्ति की तलाश में लग गया।
कुछ दिनों बाद राजा की चिंता और बढ़ गई, क्योंकि उन्हें कोई योग्य व्यक्ति नहीं मिला। राजा का मानना था कि उनका उत्तराधिकारी वही होगा, जो दूसरों के दुख को दूर करने के लिए अपनी सुख भी त्याग दे। एक दिन राजा अपने महल की खिड़की पर खड़े थे, तभी उन्होंने एक भिखारी को देखा, जिसके सामने पत्तल पर कुछ रोटियां रखी थीं। वह उन रोटियों को खाने ही वाला था।
लेकिन तभी एक बूढ़ा व्यक्ति आकर उससे खाना मांगने लगा तो उस अधिकारी ने अपनी पूरी पत्तल उठाकर उस बूढ़े आदमी को दे दी। यह सब देखकर राजा ने उस भिखारी को अपने महल में बुलाया और उसे ऊंचे आसन पर बैठने के लिए कहा। भिखारी आसन पर नहीं, बल्कि नीचे बैठ गया।
राजा ने भिखारी को बताया कि मैं तुम्हें अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाना चाहता हूं। उस व्यक्ति ने राजा से कहा कि महाराज मैं आपका राज्य नहीं ले सकता। त्याग ही असली धर्म है, यही मोक्ष का मार्ग है। राजा ने भिखारी से कहा कि मैं इसी वजह से तुम्हें अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहता हूं, क्योंकि तुम दूसरों के दुख को अपना दुख समझते हो और उनके लिए अपना सुख भी त्याग कर सकते हो। यही राजा का सबसे बड़ा गुण है।
कथा की सीख
जो व्यक्ति अपने सुख से ज्यादा दूसरे के दुखों को महत्व देता है, वही व्यक्ति श्रेष्ठ होता है और ऐसे लोगों को हर जगह मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।