सीख; वेद प्रिय नाम के एक ब्राह्मण शिव जी के भक्त थे, वे अपने परिवार के साथ शिवलिंग का निर्माण करते थे, उनकी पूजा और भक्ति भाव की वजह से जहां वे रहते थे……..
वेद प्रिय नाम के एक ब्राह्मण शिव जी के भक्त थे। उनके चार पुत्र थे- देव प्रिय, प्रिय मेधा, सुकृत और सुव्रत। पूरा परिवार शिव जी की भक्ति में लगा रहता था।
वेद प्रिय अपने परिवार के साथ शिवलिंग का निर्माण करते थे। उनकी पूजा और भक्ति भाव की वजह से जहां वे रहते थे, वह पूरी नगरी ही पवित्र हो गई, उस नगरी का नाम था अवंति, जिसे आज उज्जैन के नाम से जाना जाता है।
उस समय अवंति में एक दूषण नाम का असुर था। उसे ब्रह्मा जी वरदान मिल गया था। दूषण उन लोगों को सताता था जो धर्म-कर्म, पूजा-पाठ करते थे। जब उसे मालूम हुआ कि वेद प्रिय और उसके चार बेटे शिव जी के भक्त हैं तो उसने अपने असुरों से कहा कि जाओ और उनके परिवार पर आक्रमण कर दो।
दूषण के असुरों की वजह से अवंति नगरी में हाहाकार मच गया। सभी इधर-उधर भाग रहे थे, लेकिन वेद प्रिय और उनके चारों पुत्र शांति से अपनी शिव भक्ति में खोए हुए थे।
भागते हुए लोगों ने इन सभी से भी कहा कि आप भी यहां से चलिए, लेकिन वेद प्रिय ने कहा, ‘हमारे पास पूजा की एक ताकत है, जिसे भरोसा कहते हैं। जिन शिव जी को हम पूज रहे हैं, वे हमारा भरोसा हैं। अगर उनकी इच्छा है और हमें मरना है तो कोई भी हमें बचा नहीं पाएगा। हम तो बैठे हैं आराम से। कम से कम जो भी काम करें, वह पूरी ईमानदारी से करें तो पूजा हम ईमानदारी से ही करेंगे।’
दूषण के असुर वेद प्रिय और उनके बेटों के सामने पहुंच गए थे। पिता और चारों पुत्र शिवलिंग के सामने बैठकर पूजा कर रहे थे। उसी समय एक आवाज के साथ वहां एक गड्ढा हो गया। उस गड्ढे में से शिव जी प्रकट हो गए और उन्होंने दूषण के असुरों का वध कर दिया।
शिव जी ने वेद प्रिय और उनके बेटों से कहा, ‘आप लोग मुझसे कोई वरदान मांग सकते हैं। आप सभी पूरे समर्पण के भाव से और ईमानदारी से पूजा कर रहे थे तो मैं आपको कुछ देना चाहता हूं।’
वेद प्रिय ने शिव जी से कहा, ‘आप यहां प्रकट हुए हैं तो आप यहीं स्थापित हो जाइए।’
शिव जी ने कहा, ‘ठीक है, अब से संसार मुझे महाकाल के नाम से जानेगा। अपने भक्तों की इच्छा पूरी करके मुझे प्रसन्नता होगी।’
इसके बाद शिव जी महाकाल के रूप में उज्जैन में स्थापित हो गए।
सीख
इस कहानी ने एक संदेश दिया है कि हमारी पूजा विधि कोई भी हो, हम किसी भी देवी-देवता की पूजा करें, लेकिन हमें पूजा पूरी ईमानदारी और समर्पण के साथ करनी चाहिए। अगर हम शरीर से पूजा करेंगे और हमारा मन इधर-उधर भटकता रहेगा तो ऐसी पूजा सफल नहीं हो पाती है। पूर्ण समर्पण के साथ की गई पूजा भगवान को बांध देती है और फिर वे हमारी रक्षा जरूर करते हैं।